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को भी 'नरक' कहे जाते हैं। - अप्रत्याख्यानावरण कषाय तिर्यंच गति के कारण होने की वजह से ये
कषाय 'तिर्यंच' कहे जाते हैं। - प्रत्याख्यानावरण कषाय मनुष्य गति के कारण होते हैं, अतः ये कषाय
'मनुष्य' कहे जाते हैं। - संज्वलन कषाय देवगति के कारण होते हैं, अतः संज्वलन कषाय 'देव'
कहे जाते हैं! तात्पर्य यह है - अनन्तानुबंधी कषाय के उदय में जीव मरता है, वह नरक में ही उत्पन्न होता है। अप्रत्याख्यानावरण कषाय के उदय में मरता है, वह तिर्यंच गति में जन्म पाता है। प्रत्याख्यानावरण कषाय के उदय में मरता है, वह मनुष्य गति में जन्म पाता है और संज्वलन कषाय के उदय में जो मरता है, वह देवगति में जन्म पाता है।
चेतन, यह बात व्यवहार नय की अपेक्षा से कही गई है। मिथ्यादृष्टि जीव, अनन्तानुबंधी कषायवाले होते हैं, फिर भी अकाम निर्जरा से, उग्र तपश्चर्या कर, वे देवलोक में जाते हैं - ऐसा आगमों में पढ़ते हैं। इस विषय में अगले पत्र में कुछ लिलूँगा। स्वस्थ रहे - यही मंगल कामना,
- भद्रगुप्तसूरि
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