Book Title: Saddha Jiyakappo Author(s): Dharmghoshsuri Publisher: Jain Shwetambar Murtipujak Sangh Surat View full book textPage 6
________________ ___५८ विषय पृष्ठाक विषय अणशोभ्यां इंधन नास्त्रवा, वासी छाणां प्रमार्जन वगर उघाडे, बंध करे, ... थापवा, पुंजमां अग्नि देवो, सड्यां प्रमार्जन वगर शरीरने खजवाले, धान्य दलवा, घंटी-चुल्हा विगेरेने न बालोठ पाटादिने प्रमाा विना ले पूंजवा विगेरेमां प्रायश्चित्त । मूके, बेठां प्रतिक्रमण करे, बे वखत जन समक्ष आ चोर छे, आने अमुक वस्तु उपाश्रयप्रमार्जन पछी काजो उद्धरे चोरी छे एवु तेमज जारनु कलंक नहिं, देवगुरुने वंदन करवा दहेरे देवामां, मंत्रभेद करवामां प्रायश्चित्त । ६१ उपाश्रये जाय नहिं, पच्चक्खाण परायी वस्तुनी चोरी-दाणचोरी विश्वास पार्या विना भोजन करे, पोणी पीवे, घात करवामां प्रायश्चित्त । ६१ पुरुषनो स्त्रीने अने स्त्रीने पुरुषनो आठम आदिना नियमभंगमां, कुमारी संघट्टो तथा जलनो, अग्निनी विधवा-दासी-कुलवधू आदि परस्त्री ज्यातनो, वीजलीनो, स्पर्श थाय, गमनमां, अस्पृश्य जोतिनी स्त्रीगमनमां, पृथिवीकायादि अनंतकाय विकलेंद्रियनपुंसकसेवनमा, हस्तकर्म आदि कर पंचद्रियनो संघट्टो थाय, वमन थाय, वामां, स्वप्नमां नियमभंगमां प्रायश्चित्त। ६२ रातना अकालसंज्ञा थाय, भोजन पछी जघन्य आदि परिग्रहनो नियमभंगमः। ६४ गुरुवंदन न करे, पच्चक्खाण न करे, रात्रिभोजनमां, पांच उदुम्बरा, वेंगण, वगर कारणे शयन करे, पोरिसी महुडा, आदि फलफुलना, वासी द्विदल भणोव्या विना शयन करे, अपडिलेआदिना, जाणतां अजाणतां मध हिय जग्याए मातरं आदि परठवे, आ मांस-मद्य-माखणना नियम भंगमां बधामां प्रायश्चित्त । ६७-६९ ६५ नियम छतां वगर कारणे अतिथिसंविभाग अनंतकायमूलक आईकना भक्षणमां प्रायश्चित। ६६ न करे, पर्वतिथिमां पच्चक्खोणना नियम छतां पौषध-सामायिक न करे, न नियम छतां पच्चक्खाण न करे। ६९ पारे, पौषध-सामायिका मुहपत्ति नियम नहिं छतां पण संविभाग-नमस्कारनवकारवाली गमावे, पौषधमां बे सहितादि तप न करे, तप करनारनी वखत वसतितुं तथा रातना संथा निंदा करे, अंतराय करे, पक्खिए रानी भूमिर्नु प्रमार्जन न करे, चार उपवोस, चोमासीए छटु, संवच्छरीए वार स्वाध्याय न करे, वसति आदिमा अट्ठम न करे तेमां, गंठि सहितादिपेसतां निसीही अने निसरतां आव नमस्कार सहितादिना भंगमां, दिवसस्सही न कहे, पाणी-मातरं परठव्या चरिम पच्चक्खाण न करे, वगर पछी तथा सो होथ दूरथी आव्या कारणे भांगे तो प्रायश्चित्त । पछी ईरियावही न पडिक्कमे, बे वखत प्रतिक्रमणमां, काउस्सग्गमां, गुरुना पार्या उपधि न पडिलेहे, कमाड़ आदिने पहेलां काउस्सग्ग पारे, गुरुजी काउ प्रायश्चित्त । Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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