Book Title: Saddha Jiyakappo
Author(s): Dharmghoshsuri
Publisher: Jain Shwetambar Murtipujak Sangh Surat

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Page 5
________________ विषयानुक्रम विषय पृष्ठा विषय पृष्ठाङ्क पांच व्यवहारतुं वर्णन । २ अशुद्ध आहारपाणी ओपनारने प्रायश्चित्त । ४९ आलोचनानी विधि। ५ साधु पासे पोतार्नु औषधादि काम कराव- . आलोचनानो कोल । नार श्रावकने प्रायश्चित्त । आलोचना कोने देवी ?। कारणे पासत्था आदिने वंदन न करनारने आलोचनाचार्यना विशेषगुणो । प्रायश्चित्त । आलोचना माटे समग्रगुणवंत गुरुना पासत्था आदिनु स्वरूप । ____ अयोगमां अपवाद । कन्याना फलग्रहणमां, सांढना विवाहमा, आचार्य-उपाध्याय-प्रवर्ति-स्थावर अने ढिंगलाना विवाहमां, वृक्षारोपणमां, गीतार्थनुं स्वरूप । बलिविधानमां, नदी-कुंडादिमां पित्राआलोचना कोनी जेम करे ?। दिने पिंडदोनभां, श्राद्ध करवामां, कुदेआचार्यना छत्रीश गुणो। वताने नमन करवामां, मिथ्यादृष्टिना आलोचना करनारना दश गुणो अने तीर्थोमां स्नान करवामां प्रायश्चित्त । ५४ ___ दश दोषो। १४-१५ पूजा करतां हाथमांथी जिनप्रतिमा पडी जाय, सम्यग आलोचनामां गुणो । श्वास, वस्त्रनो छेडो, कलश-धूपदानी अगीतार्थने आलोचना देवामां दोषो। १६ आदिनो स्पर्श थाय, थूक-पग लागे, गीतार्थ गुरु पासे आलोचना न देवामा अविधिए पूजा करे ए बधामां तथा गुरु दोषो अने देवामां गुणो। अने गुरुना संथारो-आसन आदिने बराबर आलोचना करनार अने नहिं पग लागे, स्थापनाचार्यने पग लागे, करनारनुं फल । हाथमाथी पडी जाय, प्रतिमानो तथा अतिचार आपत्तिना प्रकारो। पाटी-पुस्तका दिनो' भंग-नाशमां प्रायश्चित्तना भेदो। प्रायश्चित्त । हालमा प्रायश्चित्त अने तेने आपनारा नथी मुहपत्ति-आसनादि आहारादि गुरुद्रव्य तथा एवं कहेनारने उत्तर । नैवेद्य-वस्त्र-सुवर्णादि देवद्रव्य तथा अनवस्थाप्य अने पारांचिकनुं स्वरूप । २८ साधारण-द्रव्य वापरवामां प्रायश्चित्त । ५६ आलोचनानुं फल अने तेना संबंधमां पृथिवी आदिना संघट्टनादिमां प्रायश्चित्त । राधावेधक, कथानक । बेइंद्रियथी पंचेन्द्रियना संघट्टामां तथा ज्ञान अने दर्शनना अतोचारोमा प्रायश्चित्त । ३५ अणगल जल पीवं, गरम करवू, तथा ३६३ परदर्शनिओ। तेनाथी स्नान करवू, वस्त्र धोवां आदिमां, भिक्षाना दोषो। ३९ कीडी विगेरेना घरभंगमां, चकली आहार करवाना अने नहिं करवाना कारणो। ४८ आदिना मालाना भंगमां, अग्निमां Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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