Book Title: Rushimandalsavyantralekhanam
Author(s): Sinhtilaksuri, Tattvanandvijay
Publisher: Jain Sahitya Vikas Mandal

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Page 5
________________ निवेदन आवी अनेक विशिष्टताओ तथा लाक्षणिकताओयुक्त आ दिव्य कृतिने बहार लाववा माटे संस्थाना माननीय प्रमुख शेठ श्री. अमृतलालभाईए करेल प्रयासो खास नोंध मागी ले छे। तेओश्रीए आ कृतिनुं अनेकवार वाचन, विश्लेषण अने विचिन्तन कयु छ; अने हवे पछी पृष्ठ १० उपर तेओश्रीए रजू करेल 'सारांश दर्शन' तथा समस्त कृतिमाथी लगभग प्रत्येक उपयोगी शब्दनो (कुल संख्या = ८४) रजू करेल शब्दार्थ-भावार्थ वांचतां आ हकीकत स्पष्ट थशे । आ स्तवनी नकल तेमना जोवामां आवतां तुरत ज तेनी उपयोगितानो तेमने ख्याल आव्यो अने ते लईने तेओश्री पू. पंन्यास श्रीधुरंधरविजयजी गणिवर्य पासे गया। एक महत्त्वना सीमाचिह्नरूप बनी रहे एवी आ अमूल्य कृतिने वांचतां पू. पंन्यासजीने पण अपूर्व आनंद थयो अने तेओश्रीए तेनो अनुवाद करी आपवानी जवाबदारी पोताने शिर स्वीकारी। ते अनुसार अहीं प्रकट करेल अनुवादने लक्ष्यमा राखी शेठ श्री. अमृतलालभाईए प्रत्येक उपयोगी शब्द लई ते पर ढूंको छतां सचोट शब्दार्थ तथा भावार्थ लख्यो; अने तेमां पण पू. पंन्यासजीए जरूरी सहकार अर्यो। तदुपरांत अमारी विज्ञप्तिने मान आपी 'अग्रवचन' लखी आपवा द्वारा तेमज श्रीसिंहतिलकसूरिए निर्दिष्ट करेल आम्नायने अनुलक्षीने 'ऋषिमण्डलयन्त्र'नुं संशोधन करवा द्वारा आ ग्रंथनी उपयोगिता अनेकगणी वधारी। आम, आ कृतिना प्रकाशनमां पू. पंन्यास श्रीधुरंधरविजयजी गणिवर्ये खूब परिश्रम लीधो छ। पोताना गुरु (संसारी पिताजी) पूज्य मुनिवर्य श्रीपुण्यविजयजी महाराजसाहेबनी सतत मांदगी होवा छतां अने ते कारणे तेमनो घणो समय तेओश्रीनी शुश्रूषामां व्यतीत थतो होवा छतां तेम ज पोते क्रियाकांडनी तथा साहित्य अने संशोधननी अनेकविध प्रवृत्तिओमा उद्यमी रहेवा छतां किंमती समयनो भोग आपी तेओश्रीए जे उपकार को छे तेनुं ऋण फेडी शकाय एम नथी। तेओश्रीना आ उपकार बदल संस्था तरफथी तथा संस्थाना माननीय प्रमुख शेठ श्री. अमृतलालभाई तरफथी भावभीनो आभार मानी पूज्यभाव व्यक्त करीए छीए। अनुवाद आदिमां पूज्य पंन्यासजीए जेवो उमळकापूर्वक सहकार आप्यो तेवो ज नोंधपात्र सहकार भावार्थ वगेरे साद्यंत वांची जई तेने घटित सूचनो द्वारा व्यवस्थित करी आपवामां पूज्य मुनिवर्य श्री. तत्त्वानंदविजयजीए अर्यो । अमारी विनंतीने मान आपी सिद्धान्तमहोदधि प. पू. आचार्य श्री. विजयप्रेमसूरीश्वरजी महाराजसाहेबनी आज्ञा मळतां पू. मुनि श्रीतत्त्वानंदविजयजीए आ संशोधनकार्य त्वरितपणे तथा अति चीवटपूर्वक पार पाड्युं अने तेमां ज्यारे त्यारे आवश्यकता जणाई त्यारे त्यारे तेओश्रीए पू. पंन्यास श्री. भद्रकरविजयजी गणिवर्य अने पू. पंन्यास श्री. भानुविजयजी गणिवर्यनी सहाय मेळवी। आ सर्व गुरुवर्योना अमे अत्यंत ऋणी छीए। अहीं एक खास नोंध लेवानी के संस्था तरफथी हाल मुद्रित थई रहेल 'नमस्कार स्वाध्याय' (संस्कृत विभाग) मां 'ऋषिमण्डलस्तवयन्त्रालेखन'नी आ कृतिनो समावेश करवामां आव्यो छे, तेम छतां तेना विशिष्ट, माहात्म्यने लीधे अने अनेक मुमुक्षु भाईओने खूब उपकारक थाय ए दृष्टिए तेने अलग मुद्रित करी समाज समक्ष मूकीए छीए । आ स्तव उपरांत आचार्य श्रीसिंहतिलकसूरिए 'मंत्रराजरहस्य', 'परमेष्ठिविद्यायन्त्र', 'वर्धमानविद्याकल्प', 'लघुनमस्कारचक्र', 'सूरिपदप्रतिष्ठा' आदि यन्त्रमन्त्रविषयक तथा मन्त्रगर्भित अनेक ग्रंथो रच्या छे। ते ग्रंथोमांथी पंचपरमेष्ठिविषयक संदर्भो तारवीने हवे पछी ढूंक समयमां प्रकट थनार उपर्युक्त 'नमस्कार स्वाध्याय' (संस्कृत विभाग) मां अनुवादसहित संपादित करवामां आव्या छे।। आ पुस्तिकानी साथे संस्थाए तैयार करावेल 'ऋषिमण्डलयन्त्र'नुं चाररंगी चित्र* पण आपवामां आवे छे। श्रीसिंहतिलकसूरिए निर्दिष्ट करेल आम्नायने मुख्यत्वे ध्यानमा राखीने दोरायेल आ भव्य चित्र अतीव प्रभावक बनी शक्युं छे। आ यन्त्रनुं कागळ पर आलेखन करावता पहेलां प्राप्त थई शक्यां एटलां अनेक प्राचीन-अर्वाचीन ऋषिमण्डलयन्त्रो एकत्रित करवामां आव्यां हतां। पूज्य मुनिवर्य श्री. यशोविजयजी महाराजसाहेबे तथा पू. मुनिश्री पुण्य * 'ऋषिमंडल'ना आ चाररंगी यन्त्र-चित्रनी किंमत एक रुपियो राखवामां आवी छे अने प्रस्तुत पुस्तकनी किंमतमा तेनो समावेश थतो नथी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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