Book Title: Rushimandalsavyantralekhanam
Author(s): Sinhtilaksuri, Tattvanandvijay
Publisher: Jain Sahitya Vikas Mandal

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Page 13
________________ १२ सारांश दर्शन बीज तथा पदाष्टकर्नु एक पद तथा पल्लव तरीके नमः-आ प्रमाणे बीजाष्टक तथा पदाष्टकमांथी आठ दिबंधनना मन्त्रो व्यवस्थित करवामां आवे छे; अने तेओर्नु स्थान यन्त्रनी आठ दिशाओमा राखवामां आवे छे। (७) यन्त्रालेखन-दिग्विभाग-श्लोक नं. ८ आठ दिक्पालो अथवा लोकपालो-तेओनी मुद्रा तथा आयुधो साथेना चित्रो यन्त्रनी आठ दिशाओमां राखवामां आवे छे। (८) यन्त्रालेखन-कालविभाग-श्लोक नं. ९ आठ ग्रहो-तेओनी मुद्रा तथा आयुधो साथेना चित्रो यन्त्रनी आठ दिशाओमा राखवामां आवे छे । नवमा ग्रह केतुनुं स्थान राहु साथे छे ।। (९) यन्त्रालेखन-अंगरक्षा अथवा सकलीकरण-श्लोक नं. १० यन्त्रना गर्भमागर्नु आलेखन करवान रहे छे तेथी ते करतां पहेलां दिग्बंधन तथा दिक्पालो अने ग्रहो तरफथी रक्षा तेम ज अंगरक्षानी आवश्यकता हशे तेथी अहीं श्लोक नं. ७-८-९ तथा १० नी प्रक्रिया दर्शाववामां आवी छ । आ सघळु कर्या पछी यन्त्रना गर्भगृहना आलेखननी प्रक्रिया छ । (१०) यन्त्रालेखन-मध्यवलय निर्माण-श्लोक नं. ११ श्लोक नं. ४ मां यन्त्रना मध्यभागमा जे जंबूद्वीपर्नु आलेखन कर्यु तेना पण मध्यभागमा पीळा वर्णन वलय करवं, जे सुमेरु अने निरक्षररूप+ 'ही' कारनुं स्थान छ। 'अर्ह' कार जेम अक्षर छे तेम 'ही' कार निरक्षर छ। ते 'अलक्ष्यवपुः' (जुओ श्लोक नं. २२) छे। आ सघळां नामो एक ज अर्थना वाचक छ । आ पीतवलयनी उपर बत्रीश कूटाक्षरोनुं वलय करवानो निर्देश छ । प्राणशक्ति जागृत करवाने कटाक्षरनो प्रयोग होय तेम जणाय छे, तेथी गुरुगमथी जाणी लेवो । (११) यन्त्रालेखन-गर्भगृह तथा बहिरावेष्टन-श्लोक नं. १३ यन्त्रनो गर्भभाग जे ऊर्श्वभाग तरीके दर्शावायो छे ते यन्त्रना मध्यबिंदुनी आसपासवें स्थान छे। मध्यबिंदु नजीकनो भाग ऊर्ध्व अने तेनाथी जेम जेम दूर ते अधोभाग-आ प्रमाणे यन्त्रालेखन माटे शब्दप्रयोग छ। ____देह ते इन्द्रिय, मन अने प्राण आदिनो संघात छे; तेथी आराधक देश अने काळनी अत्यंत सांकडी सीमाथी मर्यादित रहे छ । आम होवाथी आराधक भूतकाळना अने घणीवार लांबा भूतकाळना अनुभवोनी झांखी वर्तमानकाळमां केम करी शके ? भूतकाल अने वर्तमानकाळy संकलन ए जुदाजुदा काळ अने जुदाजुदा क्षेत्रना अनुभवोथी उत्पन्न थता संस्कारराशिनी अपेक्षा राखे छे। वळी एवा संकलनने परिणाम ज भावि ध्येयोना विचारो वर्तमानमा उद्भवे छे। अनेक प्रयत्नो पछी सत्यसंकल्प महर्षिओए देश (दिक्पालो) अने काल (ग्रहों) नु यन्त्रमा (उपर्युक्त श्लोक नं. ८ तथा ९ मां दर्शाव्या प्रमाणे) नियंत्रण कयु। तेथी देश अने काळनी मर्यादाथी बद्ध एवा भूतसंघातवाळा देहथी आराधकने जे अर्थक्रियाकारित्व प्राप्त थतुं नथी ते इन्द्रियो, मन अने प्राणनी एकाग्रतापूर्वक आवा नियंत्रणवाळा यंत्रना अर्चन-पूजनथी साधी शकाय छ। तेवी एकाग्रता शब्द अथवा पदनी मुख्यता द्वारा साधवानी प्रक्रियानुं विज्ञान ते मंत्रयोग अने तेनी साधना माटे प्रक्रियानो एक विभाग ते यन्त्र । * सुमेरु मेरुना अनेक अर्थ छ। ते अंगे जिशासुए श्रीसिंहतिलकसूरिना ‘मन्त्रराजरहस्य 'नु वाचन करवु घटे छ। कोई मेरुनो अर्थ मेरुपर्वत ल्ये छे अने ते प्रमाणे पीतवलयमा पर्वतनी रेखाओ पण आलेखे छे । आ साथे जे यन्त्र छे तेमां सुमेरुने 'आईन्त्यम् ' अथवा ' ही 'कार समजी आलेखन कर्यु छे तथा मेरुपर्वतनी उपमा घटावी मेरुपर्वतना ३२ कूटनी जेम ३२ कटाक्षरो फरता आलेखवामां आव्या छ। _ + जे पदोनो अथवा बीजाक्षरोनो निरक्षर तरीके निर्देश थाय तेओ अर्थसूचक करतां ध्यानसूचक वधारे होय छे। अहीं 'ही' कार निरक्षर छे तेथी तेनी ध्यान माटे मुख्यता समजवी । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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