Book Title: Rushimandalsavyantralekhanam
Author(s): Sinhtilaksuri, Tattvanandvijay
Publisher: Jain Sahitya Vikas Mandal

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Page 14
________________ सारांश दर्शन उपर 'ही 'कारनुं निरक्षर स्वरूप दर्शावायुं । हवे ते 'ह' कार, ' र 'कार अने 'ई'कार तथा उपलक्षणथी 'नाद', 'बिंदु' अने 'कला' ना संयोजनवालुं सिंहासन छे तेम दर्शावाय छे। तेना उपर चतुर्विंशति तीर्थकरो जे पण 'ही' कारस्वरूप छे तेनुं अधिष्ठान छे । वाच्य वाचकनो भेद नथी तेवुं स्वरूप अहीं दर्शावायुं छे । वारुणमण्डलनी बद्दार एटले मण्डलनी सीमानी मर्यादा बहार 'हाँ' कारना साडा त्रण वलयनुं आवेष्टन छे, ते नादस्वरूप अथवा प्राणशक्ति ( कुंडलिनी) स्वरूप छे । - ३. प्रणिधान प्रयोग — श्लोक नं. १३ थी नं. २३ : (१) द्वारगाथा - श्लोक नं. १३ प्रणिधान माटे यन्त्रनुं निर्माण केवी रीते थयुं छे ते आ द्वारगाथाथी समजाववामां आव्युं छे । यन्त्रनी रचना पार्थिवी धारणाने अनुकूळ होवाथी ते पिण्डस्थ ध्यान माटे योग्य छे । ते मन्त्रयुक्त होवाथी पदस्थ ध्यान माटे योग्य छे। अने तेमां चतुर्विंशति तीर्थकरोना बिंबो ( ना रूप ) होवाथी ते रूपस्थ ध्यान माटे योग्य छे । (२) पिण्डस्थ ध्यान --श्लोक नं. १४-१५ ध्येयनी मुख्यतावाकुं प्रचलित पार्थिवी धारणानुं स्वरूप अहीं दर्शावायुं छे । (३) पदस्थ ध्यान - श्लोक नं. १६-१७-१८-१९-२० श्री सिंह तिलकसूरिए जापना तेर प्रकारो दर्शाव्या छे तेमां ध्याननो अगियारमो प्रकार छे। * तदनुसार ध्यान 'वर्णमण्डलतत्वानुगम् छे । एटले के स्थिर अध्यवसाय - वर्ण एटले रंग उपर, मण्डल एटले शान्त्यादि कर्मनिष्पत्तिना हेतुरूप यन्त्रनी आकृति उपर, अने तत्त्व उपर आ प्रकारे वर्ण, मण्डल अने तत्त्व उपर ध्यान करवानुं होय छे । अहीं पदनी मुख्यता होय । तदनुसार जाप्यमन्त्रना वर्णसमूहनुं ध्यान होवुं जोईए । जाप्यमन्त्रनुं स्थान यन्त्र—–गर्भगृहमां नथी । तेथी 'हाँ' कार जे एकाक्षरी मन्त्र छे अने सर्व मन्त्रस्वरूप छेतेना अवयवोमां स्थिति, वर्ण भने शान्त्यादि कर्मना * भेदथी ध्यान करवानी व्यवस्था छे । 'हाँ'कारना सात अवयव निर्णीत करवामां आव्या छे; अने ते पैकी पांच शान्त्यादि कर्मनी निष्पत्तिना हेतुरूप वर्णवाळा निर्णीत करवामां आव्या छे । ते पांच वर्णवाळा अवयवमां चोवीश तीर्थकरोनुं ते ते वर्ण (रंग) प्रमाणे विभाजन करीने तेओनी ते ते अवयवमां स्थिति (अधिष्ठान ) विषे तथा ते ते शान्त्यादि कर्मनी निष्पत्ति माटे तत्त्व विषे विचिन्तननुं सूचन छे । (श्लोक नं. १६-१७-१८) * सरखावो रेचैक- पूरके - कुम्भा गुणत्रयं स्थिरकृति-स्मृती हक्कों | नांदो ध्यानं ध्येयैकत्वं तत्वं च नपभेदाः ॥ ७० ॥ Jain Education International १३ — श्री सिंह तिलकसूरिविरचितं 'मन्त्रराजरहस्यम् ' सरखावो ध्यानं तु वर्ण-मण्डल- तत्त्वानुगमत्र लब्धिमन्त्रपदम् । श्वेतं भू-जलमण्डल- तत्त्वगतं शान्ति-पुष्टिदं विषहम् ॥ ८१ ॥ — श्री सिंहतिलकसूरिविरचितं ' मन्त्रराजरहस्यम् ' * जुओ पृष्ठ ११ नीचे नोंघेल ' मन्त्राधिराजकल्प 'नो श्लोक नं. १५. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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