Book Title: Rushimandalsavyantralekhanam
Author(s): Sinhtilaksuri, Tattvanandvijay
Publisher: Jain Sahitya Vikas Mandal

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Page 34
________________ ऋषिमण्डलस्तवयन्त्रालेखनम् श्रीगौतमस्य मुद्राभिलब्धिभि( )निधीश्वरम् । त्रैलोक्यवासिनो देवा देव्यो रक्षन्तुं सर्वतः (मामितः) ॥२४॥ अनुवादः-श्री गौतमस्वामी गणधर भगवंतनी मुद्राओ तथा लब्धिओ वडे ज्योतिर्मय अने निधीश्वर थयेला (?) एवा मने त्रणे लोकमां वसता देवो अने देवीओ रक्षो (मारी रक्षा करो) ॥२४॥ 5 ६५. मुद्राभिः-मुद्राओ वडे । श्री सूरिमन्त्रनी नीचे प्रमाणेनी पांच मुद्राओ अतिशय विख्यात होवाथी तेओनो अहीं श्री। गौतमस्वामीनी मुद्रा तरीके निर्देश थयो जणाय छे : १. सौभाग्य मुद्रा-वश्य तथा क्षोभ माटे । २. सुरभि मुद्रा - शांति माटे । ३. प्रवचन मुद्रा-ज्ञान माटे । ४. परमेष्ठि मुद्रा - सर्वार्थसिद्धि माटे । ५. अंजलि मुद्रा --- आत्मसेवार्थे । ६६. लब्धिभिः-लब्धिओ वडे। जिनलब्धि, अवधिजिनलब्धि वगेरे अनेक प्रकारनी लब्धिओ छ। लब्धिधारी महापुरुषोना स्मरणादि माटे शास्त्रोमां उ ही अर्ह णमो जिणाणं, ऊँ ही अर्ह णमो 15 ओहिजिणाणं वगेरे अनेक लब्धिपदो सूचववामां आव्या छ। ए लब्धिपदोना स्मरणथी आत्मानी ज्ञानादि अनेक शक्तिओनो समुचित विकास थाय छे। जुदां जुदां लब्धिपदोनी शास्त्रीय रीते संयोजना करीने - तेमनु स्मरण करवाथी शान्त्यादि अनेक अर्थक्रियाओ थाय छे ।। (लब्धिओनी संख्या तथा नामो माटे जुओ परिशिष्ट २). ६७. भा निधीश्वरम्-(मुद्रा तथा लब्धि वडे करायेल जापना प्रभावथी) ज्योतिर्मय अने 20 सर्वनिधीश्वर बनेला मारी देवो तथा देवीओ रक्षा करो। (निधि तथा देवीओना नाम माटे जुओ अनुक्रमे परिशिष्ट ९ अने परिशिष्ट ५) ६८. त्रैलोक्यवासिनो देवा देव्यः-जुदी जुदी प्रणालिका अनुसार जे जे देवो तथा देवीओर्नु रक्षा माटे आमंत्रण थाय छे तेओनो अहीं नामनिर्देश करवामां आवे छे । ६९. रक्षन्तु सर्वतः (मामितः) तेओ मारी सर्वप्रकारे रक्षा करो। 25 * सरखावो श्रीगौतमस्य या मुद्रा तस्या या भुवि लब्धयः । ताभिरभ्यधिकं ज्योतिरहन् सर्वनिधीश्वरः ॥७७ ॥ पातालवासिनो देवाः, देवाः भूपीठवासिनः । स्वर्वासिनोऽपि ये देवाः सर्वे रक्षन्तु मामितः ।। ७८ ॥ -श्रीऋषिमण्डलस्तोत्रम् + एतजापात् सूरिौतमलब्धिभाभिरुत्तेजाः। देवासुर-दनुजेन्द्रर्वन्द्योऽथ त्रिभवशिवगामी ॥४७८॥ -श्रीसिंहतिलकसूरिविरचितं 'मन्त्रराजरहस्यम्' ऋ.मं.३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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