Book Title: Rushimandalsavyantralekhanam
Author(s): Sinhtilaksuri, Tattvanandvijay
Publisher: Jain Sahitya Vikas Mandal
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ऋषिमण्डलस्तवयन्त्रालेखनम् ज्ञान-दर्शन-चारित्र-तपांसीति स्मरन् मुनिः । शतमष्टोत्तरं लब्ध्वा(द्धा), चतुर्थतपसः फलम् ।। ३३ ।। कृत्वा पापसहस्राणि, हत्वा जन्तुशतानि च । अमुं मन्त्रं समाराध्य, "तिर्यञ्चोऽपि दिवं गताः ॥ ३४ ॥ पतद् व्यसनपाताले, भ्रमत् संसारसागरे । अनेनैव जगत् सर्वमुद्धृत्य विधृतं शिवे ॥ ३५ ॥ मूर्ध्नि रत्नत्रयं विभ्रज्जिनबीजं नमोऽक्षरम् ।
इति रत्नत्रयं ध्येयं, जिनबीजस्य बीजकम् ॥ ३६॥
अनुवादः-ज्ञान, दर्शन, चारित्ररूपी तपने १०८ वार स्मरण करतो मुनि उपवासना फळने 10 प्राप्त करनारो थाय छे ॥३३॥
अनुवादः-पूर्वे हजारो पापो कर्या छतां अने सेंकडो जीवोनी हिंसा कर्या छतां पण (पछीना जीवनमा) आ मंत्र- आराधन करवाथी पशुओ पण स्वर्गगामी बन्यां छे ॥ ३४ ॥+
अनुवादः-व्यसनरूप पाताळमां पडतुं अने संसारसागरमा भमतुं एवं जगत आ मंत्र वडे ज उद्धरीने शिवा धारण करायुं छे ॥ ३५॥ 15 अनुवादः--मस्तक पर रत्नत्रयस्वरूप रेफने धारण करतुं अने नमो अक्षरवाळं जिनबीज (अर्ह) (अर्थात् 'ॐ ही अर्ह नमः' ) रत्नत्रय तरीके ध्येय छ। ते (रत्नत्रय) जिनबीजनुं पण बीज छे ॥३६॥
८०. ज्ञान-दर्शन-चारित्र तपांसि
(उ) ज्ञान-दर्शन-चारित्रेभ्यो (नमः)-आ प्रमाणे जाप्य मूलमन्त्रना त्रीजा खंडन जे मुनि १०८ वार स्मरण करे छे ते उपवासना फळने प्राप्त करे छे। अहीं ज्ञान, दर्शन, चारित्र त्रिरत्नरूपी 20 तप छे।
८१. मुनिः-मुनि एटले जगतना तत्त्वोनुं मनन करनार । अथवा मुनि एटले मौन(संयमाने धारण करनार ।
८२. तिर्यञ्चः-जो तिर्यंचो पण आ मंत्रनी आराधनायी स्वर्गने पाम्या, तो बुद्धिमान मनुष्य एनाथी शुं न पामी शके ?
८३. अनेनैव....शिवे-आ मंत्रनी साधना ए महान धर्म छ। धर्मनुं लक्षण करतां पण शास्त्रकारोए कहुं छे के 'जे दुर्गतिमांथी जीवनी रक्षा करे अने तेने मोक्षमां धारण करे, ते धर्म कहेवाय ।
८४. रत्नत्रयं....बीजकम्-अहीं ऊँ ह्री अर्ह नमः नो ध्येय तरीके निर्देश करवामां आव्यो छे; कारण के, रत्नत्रय ए जिनबीजनुं पण बीजक छे । आत्मा जिन (परमात्मा) बनावनार रत्नत्रय होवाथी,
तेने जिनबीजनुं पण बीज कहेवामां आवे छे। रत्नत्रयनी मुख्यता आ प्रमाणे नाना मंत्रपदमां दर्शावीने 30 समग्र यंत्रस्तवना सार तरीके तेने कहेवामां आव्यु छ।
+ आ श्लोक 'योगशास्त्र'ना अष्टम प्रकाशमां श्लोक नं. ३७ तरीके मळे छे। मूलमंत्रना त्रीजा खंडनी फलश्रुति आ श्लोकमां तथा आ पछीना श्लोकमां आपवाम आवी छ। * मन्यते यो जगत्तत्त्वं स मुनिः परिकीर्तितः ।
-श्री ज्ञानसार अष्टक, मौनाष्टक. 8 जुओ, उपा. श्री यशोविजयजी कृत 'धर्मपरीक्षा'।
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