Book Title: Rushimandalsavyantralekhanam
Author(s): Sinhtilaksuri, Tattvanandvijay
Publisher: Jain Sahitya Vikas Mandal

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Page 12
________________ सारांश दर्शन (४) जाप्यमन्त्र संयोजना-प्रथम खण्ड-बीजाष्टक-श्लोक नं. ५ जाप्यमन्त्र त्रण खण्डमां व्यवस्थित थयो छ। यन्त्रालेखननो प्रस्ताव चालु होवा छतां ते दरम्यान मन्त्रोद्धारनो निर्देश शरू थाय छे; कारण के तेना प्रथम खण्डमां जे बीजाष्टक छे तथा बीजा अने त्रीजा खण्डमां जे पदाष्टक छे तेनो यन्त्रालेखनना दिग्विभागमा समावेश करवो छ। (जुओ-श्लोक नं. ७) प्राकृत जनने गुरुगम विना जाप्यमन्त्रनो स्फोट न थाय तेटला माटे तेने श्लोकमां विदर्भित करी गोपववानी प्रथा हती। ते प्रथा अनुसार अहीं श्लोक नं. ५ तथा नं. ६ मां जाप्यमन्त्र गोपव्यो छे। परंतु स्तवकारे उपकारदृष्टिए विदर्भित श्लोकमांथी मन्त्रोद्धार करी जाप्यमन्त्र स्पष्ट कयों छे । (५) जाप्यमन्त्र संयोजना-द्वितीय तथा तृतीय खण्ड-पदाष्टक-श्लोक नं. ६ अर्हदादि पंचपरमेष्ठिनुं पदपंचक ते जाप्यमन्त्रनो द्वितीय खण्ड छे अने ज्ञान, दर्शन अने चारित्रना त्रण पद ते जाप्यमन्त्रनो तृतीय खण्ड छ। द्वितीय खण्ड तथा तृतीय खण्ड मळीने पदाष्टक थाय छ । त्रण खण्डना आ जाप्यमन्त्रना अक्षरनी संख्या नीचे प्रमाणे छे: अक्षर (वर्ण) संख्या १ जाप्यमन्त्रनुं शिर-ॐ ८ बीजाष्टक-जाप्यमन्त्र प्रथम खण्ड ५ पदपञ्चक जाप्यमन्त्र द्वितीय खण्ड असि आ उ सा पदाष्टक ९ पदत्रिक । जाप्यमन्त्र तृतीय खण्ड ज्ञानदर्शनचारित्रेभ्यो २ जाप्यमन्त्रनो पल्लव-नमः २५ आ प्रकारे जाप्यमन्त्र पच्चीस अक्षरनो (वर्णनो)* थाय छे। कोई 'सम्यक्' शब्द उमेरी जाप्यमन्त्रने सत्तावीस अक्षरनो करे छे; परंतु अहीं आम्नाय निश्चित प्रकारे मळे छे तेथी तेमां आवी रीते काईपण उमेरो करवो इष्ट नथी। कोई जाप्यमन्त्रमा एक 'ही'कार विशेष उमेरे छे। तेम करीने 'ही'कारनो संपुट साधे छे; परंतु तेवी कोई विशिष्ट क्रियानी अहीं आवश्यकता नथी। एम होत तो स्तवकार तेनो स्पष्ट उल्लेख करत । (६) यन्त्रालेखन-दिक्बंधन-श्लोक नं. ७ मन्त्रोद्धार प्रमाणे निर्णीत थयेला जाप्यमन्त्रनो अहीं आठ दिशाओनी रक्षा माटे दिक्बंधन करवामां उपयोग थाय छे। जाप्यमन्त्रना बे खण्ड करीए तो (१) बीजाष्टक तथा (२) पदाष्टक थाय छ। ॐकार साथे बीजाष्टकनुं एक * आने कोई ‘मन्त्रवर्णनिचय' पण कहे छ। सरखावो तन्मन्त्रवर्णनिचर्य स्थितिवर्णकर्मभेदैर्भणाम्यहमिहात्महिताय बालः ॥ १५॥ ---श्रीसागरचन्द्रसूरिविरचित 'श्रीमन्त्राधिराजकल्प' (जैनस्तोत्रसंदोह-पृष्ठ २३४) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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