Book Title: Rushimandalsavyantralekhanam
Author(s): Sinhtilaksuri, Tattvanandvijay
Publisher: Jain Sahitya Vikas Mandal

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Page 28
________________ ऋषिमण्डलस्तवयन्त्रालेखनम पौर्थिवीधारणायुक्त्या, पिण्डेंस्थं मन्त्रयुक्तितः । पदस्थमहतो रूपवद् यन्त्रं रूपयुक् ऊमात् ॥१३॥ अनुवादः—आ यंत्र अनुक्रमे पार्थिवी धारणायुक्त होवाथी पिण्डस्थ, मंत्रसहित छे माटे पदस्थ अने अरिहंतना रूपवाळु छे माटे रूपस्थ छे ॥१३॥ तिर्यग्लोसमः क्षाराम्बुधिस्तस्यान्तरमम्बुजम् ।। जम्बूद्वीपः सदिपत्रं, स्वर्णाद्रिस्तत्र कर्णिका ।। १४ ॥ सिंहासनेत्र चन्द्राभे, आत्माऽऽनन्दं परं श्रितः। अर्हन्मयो हृदि ध्येयः, पार्थिवीधारणेत्यसौ ॥१५॥ अनुवादः-क्षाराम्बुधि-लवणसमुद्र ए तिर्यग्लोक समान छे ने तेमां जंबूद्वीप ए दिशाओरूप पत्र सहित-कमळ छे ने तेमां मेरुपर्वत ए कर्णिका--कळी छे । अहीं चन्द्रप्रभा समान प्रभावाळु सिंहासन 10 छे ने तेमां परम आनंदने प्राप्त अने अरिहंतरूपे निजात्मानुं ध्यान हृदयमां करQ । ए प्रमाणे आ पार्थिवी धारणा छे ॥१४-१५॥ ५१. पार्थिवीधारणायुक्त्या यंत्रनु आयोजन पार्थिवी धारणाने अनुरूप छे तेथी। ५२, पिण्डस्थम्-पिण्डस्थ ध्यानने अनुकूळ छे । * ५३. मन्त्रयुक्तितः-जाप्यमन्त्र युक्त छे तेथी। ५४. पदस्थम्-पदस्थ ध्यानने अनुकूळ छे। ५५. अर्हतः रूपवत्-२४ जिनवरोना (जिनावलीना) रूपy (बिम्बनूं) आलेखन होवाथी। ५६. रूपयुक्-रूपस्थ ध्यानने अनुकूळ छे। ५७. क्रमात्-ध्यानमां पण पहेला पिण्डस्थ पछी पदस्थ अने पछी रूपस्थ ए क्रमे थ, जोईए। ५८. तिर्यग्लोकसमः-श्री हेमचन्द्राचार्यविरचित 'योगशास्त्र'ना सप्तम प्रकाशमां पार्थिवी 20 धारणा अंगे श्लोक नं. १०, ११ अने १२ मां वर्णन आवे छे। ते त्रण श्लोकनो सार अहीं श्लोक नं. १४-१५ 46 पिण्डस्थ वगेरे ध्यानने मळती प्रक्रियाओ इतरोमां नीचे प्रमाणे जोवामां आवे छे:जैन संज्ञा इतरोनी संज्ञा तेनी इतरोमां दर्शावेल समजूति अहीं वस्तु तथा उपलब्धि बन्ने होय अने पिण्डस्थ ध्यान व्याप्ति प्रमेयनी मुख्यता वर्ते छ। अहीं वस्तु विद्यमान न होय छतां उपलब्धि पदस्थ ध्यान महान्याप्ति होय अने प्रमाणनी मुख्यता वर्ते छे। अहीं अवस्तु अने अनुपलभ छतां वैद्यरूपस्थ ध्यान प्रचय च्छायनी वृत्ति वर्ते छे। रूपातीत ध्यान महाप्रचय 25 For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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