Book Title: Rushimandalsavyantralekhanam
Author(s): Sinhtilaksuri, Tattvanandvijay
Publisher: Jain Sahitya Vikas Mandal

View full book text
Previous | Next

Page 31
________________ १४ ऋषिमण्डलस्तवयन्त्रालेखनम् + अन्यत्र विशेषः अर्हन्तो वृत्तकला त्रिकोण-सिद्धस्तु शीर्षकं सूरिः। चन्द्रकलोपाध्यायो दीर्घकला साधुरिह पञ्च ॥ २० ॥ अनुवादः-अन्य स्थळे प्रकारविशेष नीचे प्रमाणे मळे छ :5 गोळ कला जे बिन्दुनी छे ० (५) ते अरिहंत छ। त्रिकोण जे नाद छे (६) ते सिद्ध छ। शीर्षयुक्त सर्व ---माथु ह ने र—(ह-१-२-३) ए सूरि छ। चन्द्रकला (४) ए उपाध्याय छे अने दीर्घकला जे ईकारनी छे (७) ते साधु छ । एम अहीं एटले हीकारमां पांच (परमेष्ठी) छे ॥२०॥ - बीजाक्षर होकारना अंशो तथा वर्णोना ध्यान माटे कोष्टक [श्लोक १६-१७-१८-१९ मुजब] बीजाक्षरना अंशोनुं अंश आलेखन वर्ण ध्यातव्य परमेष्ठिपंचक ध्यातव्य तीर्थकृन्मंडल Mhe पीत आचार्य (सूरि) बाकीना १६ तीर्थकरो रेफ ह (सान्त) शिर चन्द्रकला बिंदु(अभ्र) नाद 15 or moru, रक्त श्याम सिद्ध साधु अरिहंत उपाध्याय श्री पद्मप्रभ, श्री वासुपूज्य श्री नेमिनाथ, श्री मुनिसुव्रत श्री चन्द्रप्रभ, श्री सुविधिनाथ . श्री पार्श्वनाथ, श्री मल्लिनाथ श्वेत स्वर नील बीजाक्षर हीकारना अंशो तथा वर्णोना ध्यान माटे कोष्टक [श्लोक २० मुजब] 20 बीजाक्षरना | अंशोनुं अंश आलेखन __वर्ण ध्यातव्य परमेष्ठिपंचक ध्यातव्य तीर्थकृन्मंडल rrm शीर्षक her पीत S आचार्य (सूरि) बाकीना १६ तीर्थकरो ) नील श्वेत चन्द्रकला वृत्तकला त्रिकोण दीर्घकला उपाध्याय अरिहंत . श्री मल्लिनाथ, श्री पार्श्वनाथ श्री चन्द्रप्रभ, श्री सुविधिनाथ श्री पद्मप्रभ, श्री वासुपूज्य श्री नेमिनाथ, श्री मुनिसुव्रत सिद्ध श्याम साधु , 30 + श्री नमस्कार संबंधी श्री मानतुङ्गसूरिनु 'नवकारसारथवणं' नामर्नु एक स्तोत्र 'नमस्कार स्वाध्याय' ना प्राकृत विभागमां आपेल छे। तेमां जे प्रकारविशेष उपलब्ध थाय छे तेनो अहीं निर्देश करवामां आव्यो छे। $ सरखावो:- वट्टकला अरिहंता तिउणा सिद्धा य लोढकल सूरी। उवज्झाया सुद्धकला दीहकला साहूणो सुहया ॥१०॥ - नवकारसारथवणं (न. स्वा. प्रा. वि. पृ. २६३) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50