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ऋषिमण्डलस्तवयन्त्रालेखनम् + अन्यत्र विशेषः
अर्हन्तो वृत्तकला त्रिकोण-सिद्धस्तु शीर्षकं सूरिः।
चन्द्रकलोपाध्यायो दीर्घकला साधुरिह पञ्च ॥ २० ॥
अनुवादः-अन्य स्थळे प्रकारविशेष नीचे प्रमाणे मळे छ :5 गोळ कला जे बिन्दुनी छे ० (५) ते अरिहंत छ। त्रिकोण जे नाद छे (६) ते सिद्ध छ। शीर्षयुक्त सर्व ---माथु ह ने र—(ह-१-२-३) ए सूरि छ। चन्द्रकला (४) ए उपाध्याय छे अने दीर्घकला जे ईकारनी छे (७) ते साधु छ । एम अहीं एटले हीकारमां पांच (परमेष्ठी) छे ॥२०॥
- बीजाक्षर होकारना अंशो तथा वर्णोना ध्यान माटे कोष्टक
[श्लोक १६-१७-१८-१९ मुजब]
बीजाक्षरना अंशोनुं
अंश आलेखन
वर्ण
ध्यातव्य परमेष्ठिपंचक
ध्यातव्य तीर्थकृन्मंडल
Mhe
पीत
आचार्य (सूरि)
बाकीना १६ तीर्थकरो
रेफ ह (सान्त)
शिर चन्द्रकला बिंदु(अभ्र)
नाद
15
or moru,
रक्त
श्याम
सिद्ध साधु अरिहंत उपाध्याय
श्री पद्मप्रभ, श्री वासुपूज्य श्री नेमिनाथ, श्री मुनिसुव्रत श्री चन्द्रप्रभ, श्री सुविधिनाथ . श्री पार्श्वनाथ, श्री मल्लिनाथ
श्वेत
स्वर
नील
बीजाक्षर हीकारना अंशो तथा वर्णोना ध्यान माटे कोष्टक
[श्लोक २० मुजब]
20
बीजाक्षरना | अंशोनुं
अंश आलेखन
__वर्ण
ध्यातव्य परमेष्ठिपंचक
ध्यातव्य तीर्थकृन्मंडल
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शीर्षक
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पीत
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आचार्य (सूरि)
बाकीना १६ तीर्थकरो
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नील श्वेत
चन्द्रकला वृत्तकला त्रिकोण दीर्घकला
उपाध्याय अरिहंत
.
श्री मल्लिनाथ, श्री पार्श्वनाथ श्री चन्द्रप्रभ, श्री सुविधिनाथ श्री पद्मप्रभ, श्री वासुपूज्य श्री नेमिनाथ, श्री मुनिसुव्रत
सिद्ध
श्याम
साधु
,
30 + श्री नमस्कार संबंधी श्री मानतुङ्गसूरिनु 'नवकारसारथवणं' नामर्नु एक स्तोत्र 'नमस्कार स्वाध्याय' ना प्राकृत विभागमां आपेल छे। तेमां जे प्रकारविशेष उपलब्ध थाय छे तेनो अहीं निर्देश करवामां आव्यो छे। $ सरखावो:- वट्टकला अरिहंता तिउणा सिद्धा य लोढकल सूरी। उवज्झाया सुद्धकला दीहकला साहूणो सुहया ॥१०॥
- नवकारसारथवणं (न. स्वा. प्रा. वि. पृ. २६३)
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