Book Title: Rushimandalsavyantralekhanam
Author(s): Sinhtilaksuri, Tattvanandvijay
Publisher: Jain Sahitya Vikas Mandal

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Page 23
________________ 5 अनुवाद:- पछी परमेष्ठी वाचक प्रथम अक्षरो — पहेला पांच (अ सि आ उ सा) व्यारबाद 'ज्ञानदर्शनचारित्रेभ्यो नमः ' - आ मंत्र छे । ते पदाष्टक तथा बीजाष्टकथी उज्ज्वळ छे ॥ ६ ॥ ऋषिमण्डलस्तवयन्त्रा लेखनम् २५. परमेष्ठ्यक्षराश्चाद्याः परमेष्ठि + अक्षराः + च + आद्याः -- पांच परमेष्ठीना आदि अक्षरो- -असि आ उ सा । परमेष्ठ्यक्षराचाद्याः, पञ्चातो "ज्ञान-दर्शन चारित्रेभ्यो नमः” मन्त्रः पदवीजाष्टकोज्ज्वलः ॥ ६ ॥ * [ मन्त्रोद्धारः - जाप्यमन्त्रः - ] 46 ' ँ हाँ ही हूँ हूँ है है हो हू: अ सि आ उ सा ज्ञान-दर्शन- चारित्रेभ्यो नमः || ” २६. पदाष्टकः --आठ पदो । 'अ सि आ उ सा' ना पांच पदो तथा 'ज्ञान, दर्शन अने 10 चारित्रना' त्रण मळी आठ पदो । 15 २७. बीजाष्टकः— हूँ हूँ हुँ हूँ हूँ हूँ हूँ हूँ: – सामान्य बीजना धर्मो जेमां होय ते बीज कहेवाय छे । जेम बीजमांथी फणगो- अंकुरो अने फळ निपजे छे तेम आ बीजाष्टकमांथी शान्त्यादि अर्थक्रियारूप फळ निपजे छे । १८. उज्ज्वलः - मंत्र पदाष्टकथी तथा बीजाष्टकधी अलंकृत छे । 20 Jain Education International * सरखावोः - (१) 'ऋषिमण्डलस्तोत्र' मां जाप्यमन्त्र आ प्रकारे दर्शान्यो छे : " ' ँ हूँ ही हूँ हूँ हूँ: असिआ सा सम्यग् दर्शन- ज्ञान - चारित्रेभ्यो नमः || ” पूज्यनामाक्षरा आद्याः, पञ्चातो ज्ञान-दर्शन चारित्रेभ्यो नमो मध्ये, ह्रौ सान्तः समलङ्कृतः ॥ १० ॥ (२) इदमेव हि बीजम् ' अधोरेफ - आ-ई-ऊ- - अं अः ' एतैर्युक्तं बीजं भवतीति व्यापकत्वं चास्य । - श्रीसिद्ध हे मशब्दानुशासनम् । अनुवाद:- आ (हकार ) बीज-नीचे रेफ तथा आ, ई, ऊ, औ, अं, अः - एवा छ स्वरो पैकी कोईथी युक्त थतां बीज बने छे । ए ज एनी व्यापकता छे । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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