Book Title: Rushimandalsavyantralekhanam Author(s): Sinhtilaksuri, Tattvanandvijay Publisher: Jain Sahitya Vikas Mandal View full book textPage 7
________________ अग्रवचन यन्त्र-मन्त्र-तन्त्र कोईपण विशिष्ट यन्त्रनुं ज्ञान मेळवता पहेलां यन्त्र, मन्त्र भने तन्त्र ए त्रणे शब्दोनी सामान्य समज होवी जरूरी छे; कारण के विशिष्ट अनुष्ठानोमां आ त्रणेनी एकवाक्यता सधाय छे । यन्त्रज्ञाननी साथे ते ते यन्त्रने अनुरूप मन्त्र अने तन्त्रनुं विधिज्ञान अनिवार्य बनी रहे छे । यन्त्रमां मुख्यत्वे आलेखननुं महत्त्व छे, मन्त्रमां अक्षरसंयोजना तथा जाप महत्त्वनी बाबतो छे अने तन्त्रमां पूजन- द्रव्यो तथा विधि अगत्यनुं स्थान भोगवे छे। आ यन्त्र, मन्त्र अने तन्त्र हंमेशां सात्त्विक ज होय एवं नथी, असात्त्विक पण होय छे अने तेनी साधना पण सात्त्विक करतां सरळताथी थाय छे; परंतु परिणामे तेवी साधना दुःखद नीवडे छे। एटले यन्त्र, मन्त्र भने तन्त्रनी उपासना विवेकबुद्धिपूर्वक थाय तो ज ए श्रेयस्कर बने छे । rat प्रकट करेल ऋषिमण्डलयन्त्रमां यन्त्रनुं आलेखन मुख्य होवा छतां मन्त्र अने तन्त्रनो पण यथोचित निर्देश छे; अने ते बेने बाजु पर मूकी मात्र यन्त्रनो आपणे विचार करी शकता नथी । ऋषिमण्डलयन्त्रनी प्राचीनता आपणी ज्ञानमर्यादामा हाल जे यन्त्रो छे तेमां ऋषिमण्डलयन्त्र सौथी विशेष प्राचीन हशे एम कहेवाने मुख्यत्वे वे कारण छेः एक तो ए के आ ऋषिमण्डलयन्त्रनुं पूजन अति प्राचीन समयथी थतुं आन्युं छे, एवा आधारो आपणने प्राप्त थाय छे। बीजुं ए के आ यन्त्रनी प्राचीनता तथा तेना प्रभुत्व विषे चर्चा करतुं जे साहित्य, लोकोक्तिओ आदि मळे छे तेवुं भने तेटलं पुराणुं अन्य कोई यन्त्रनी बाबतमां मळतुं नथी । ऋषिमण्डलयन्त्रनो प्रभाव आ यन्त्रनी रचना, तेना आराधको अने आराधकोए मेळवेल फलश्रुतिनुं वर्णन करतां अनेक स्तोत्रो, श्लोको, उद्वारो आपणा वांचवामां आवे छे। तेथी आ यन्त्र अतीव प्रभावसम्पन्न छे एमां बे मत नथी; अने आवुं सनातन प्रभावशाली यन्त्र ज युगो सुधी अविस्मृतपणे टकी शके । तेनी प्राचीनता पूरवार करवा माटे आ शाश्वत प्रभाव पण सबळ कारण छे । आ यन्त्रनी विधिपूर्वकनी आराधनामां जेम जेम प्रगति थाय छे तेम तेम अपूर्व अनुभवोनी झांखी थती जाय छे। अकल्प्य भावसृष्टिमां विहार करता होईए एम लागे छे । आ बाबत मुख्यत्वे अनुभवगम्य छे अने तेथी ते अंगेनो वाक्यविस्तार अहीं अनावश्यक छे । यन्त्रना आराधकनी योग्यता यन्त्र अति प्रभावशाली छे। अने तेनो आराधक कदीय न अनुभव्या होय एवा भावो अनुभवे छे; तो पछी बधा आराधकोने एवी झांखी केम थती नथी आ एक अति महत्त्वनो प्रश्न छे; कारण के ते एक आराधकनो नहीं पण खास करीने वर्तमानकाळना सेंकडो आराधकोनो प्रश्न छे । फलश्रुतिनी निष्फळता माटे मात्र बे ज कारण होई शके: कां तो यन्त्रमां खामी होय अथवा यन्त्रना आराधकमां खामी होय । आ यन्त्रमां क्षति छे एवं सिद्ध करवाने आपणी पासे कोई कारण नथी अने तेथी आराधकने पक्षे ज विचारवानुं रहे छे । आकर्षक अने प्रेरक वचनोथी खेंचाईने अनेक आराधकोने अपूर्व अनुभवो अनुभववानी इच्छा थई आवे छे, परंतु योग्यता केळव्या विना ए गहन मार्ग प्रति डगलुं भरवुं हितकर नथी । वर्तमानकाळमां यन्त्र-मन्त्र आदिनो प्रभाव ओछो वर्ताय छे; तेमां आराधकनी योग्यतानो अभाव ए प्रधान कारण छे; आराधके आराधनाना अधिकारी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50