Book Title: Ratribhojan Tyag Avashyak Kyo
Author(s): Sthitpragyashreeji
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 9
________________ (viii) पाचनतंत्र की दृष्टि से भोजन का पाचन जितनी सहजता से प्रात:काल में होता है उतनी सहजता से अन्य समय में नहीं होता है। हमारे ऋषि मुनियों ने प्रात:काल में किए गए भोजन को अधिक सुपाच्य बताया है जो अमृततुल्य है। इस मान्यता की पृष्ठभूमि में जो तथ्य है वह है सूर्य की रोशनी में रोग-प्रतिकारक शक्ति का होना। सूर्य की तपिश में ऐसे अनेक विषैले कीटाणु निष्क्रिय बन जाते हैं, जो सूर्यास्त के बाद सक्रिय होने लगते हैं। इन्हीं बातों को ध्यान में रखकर पूज्या साध्वीश्री स्थितप्रज्ञा श्रीजी ने 'रात्रिभोजन त्याग क्यों?' विषय पर लघु पुस्तिका का प्रणयन किया है जो वर्तमान सन्दर्भ में सबके लिए उपयोगी है। इस अनुपम कृति के लिए साध्वीश्री को साधुवाद। इस पुस्तक के प्रकाशन में अर्थ-सहयोगी रहे जिनधर्मानुरागी अनिलजी, जिनशासन समर्पिता अंजनाजी, प्रतिभाशालिनी अंशूजी एवं अध्ययनरसिका अमीवर्षाजी जड़िया परिवार के प्रति हम आभारी हैं। पार्श्वनाथ विद्यापीठ के डाइरेक्टर इंचार्ज डॉ० श्रीप्रकाश पाण्डेय, वरिष्ठ प्राध्यापक डॉ. सुधा जैन, डॉ. विजय कुमार एवं श्री ओमप्रकाश सिंह आदि को मेरा धन्यवाद जिन लोगों ने इस पुस्तक के प्रकाशन में अपना अमूल्य समय दिया है। सुन्दर अक्षर-सज्जा के लिए श्री विमलचन्द्र मिश्र, रथयात्रा, वाराणसी तथा सत्वर मुद्रण के लिए महावीर प्रेस, भेलूपुर, वाराणसी सर्वथा धन्यवाद के पात्र हैं। सागरमल जैन मानद् सचिव पार्श्वनाथ विद्यापीठ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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