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यह प्रत्यक्षीभूत विषय है कि कोई उत्तम जौहरी जब कीमती हीरा खरीदता है तब वह हीरे को दिन के प्राकृतिक प्रकाश में ही कई प्रकार से देखकर खरीदता है। रात्रि के प्रकाश में नहीं। यह भी अनुभव करते हैं कि लाख पॉवरवाला बल्ब रहने पर भी कमल सूर्यास्त के बाद विकसित नहीं होता। उसे विकसित करने की ताकत तो सिर्फ सूर्य में ही है। उसी प्रकार शरीर-मन एवं आत्मा को स्वस्थ रखने की ताकत दिवसकालीन भोजन में ही है। ___यह पढ़ने को मिला है कि मांसाहारी पशु दिन को आराम करते हैं और रात को आहार की खोज में घूमते हैं। यदि कोई ऐसा कहे कि आजकल शाकाहारी पशु भी रात को खाते हैं, यह कहना ठीक नहीं है। कदाचित् देश कालगत दुष्प्रभाव से यह संभव हो सकता है सामान्यतया असंभव है।
सामान्यतः जंगल में रहने वाले गाय, हिरण आदि पशु भी रात्रिभोजन करते हों ऐसा ज्ञात नहीं है और न ही देखा-सुना गया है। यदि कोई ऐसा कहे, रात में नहीं खाने से दूसरे दिन तक १४१५ घंटे का अंतर हो जाता है। जबकि सुबह और शाम के भोजन के बीच बहुत अंतर नहीं है। इस कारण रात्रिभोजन का त्याग वैज्ञानिक ढंग वाला नहीं है तो वह सत्य बात से अज्ञात है। सुबह में खाने के बाद जितना परिश्रम किया जाता है उससे बहुत कम परिश्रम रात में खाने के बाद किया जाता है। अतः रात्रिभोजन करना उचित नहीं है।
रात्रिभोजन करना महापाप है। जैन रामायण की एक छोटी सी घटना इस बात का समर्थन करती है वह घटना इस प्रकार है- राम-लक्ष्मण ने वनवास स्वीकार करके वनगमन किया।
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