________________
( 36 )
रात्रिभोजन त्याग करने से होने वाले लाभ
जैन धर्म में रात्रिभोजन को महापाप बताया गया है और यह भी कहा गया है कि केवलज्ञानी भी रात्रिभोजन के संपूर्ण दोषों का वर्णन नहीं कर सकते हैं। रात्रिभोजन के त्याग से जिस तरह आत्मा की सुरक्षा है उसी तरह शरीर की सुरक्षा भी होती है। रात्रिभोजन न करने से तन-मन और आत्मा तीनों स्वस्थ रहते हैं
१. रात्रिभोजन त्याग से आहार संज्ञा पर विजय प्राप्त होती है। २. लोभकषाय पर विजय प्राप्त होती है।
३. मानसिक निर्मलता का विकास होता है।
४. भावनाएँ पवित्र बनती हैं।
५. विषय-वासना, विकार के भाव दूर होते हैं।
ऐतिहासिक साक्ष्यों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि अतीत काल से लेकर वर्तमान युग के वैज्ञानिक भी रात्रि - भोजन को उचित नहीं मानते। आधुनिक सभ्यता में पले-बढ़े लोग 'डिनर' के नाम पर भले ही रात्रिभोजन को महत्त्व देते हों, वह है अनुचित ही । जैन, बौद्ध और वैदिक धार्मिक परम्परा ही नहीं, चरक और सुश्रुत जैसे आयुर्वेदिक ग्रन्थकार भी रात्रिभोजन से होने वाली हानियों का चित्रण करते हैं।
पर
सारतत्त्व यही है कि रात्रिभोजन से जीवहिंसा, कर्म-बंधन, व्रत-भंग, दानान्तराय, स्वास्थ्यहानि, आर्थिकहानि, नैतिक एवं आध्यात्मिक पतन, मानसिक चंचलता, सामाजिक विकृति आदि अनेक हानियाँ हैं, लाभ लेशमात्र भी नहीं है। अतः रात्रिभोजन अपरिहार्यतः वर्जनीय है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org