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रात्रिभोजन त्याग सम्बन्धी दृष्टांत
प्राचीन काल से आज तक रात्रिभोजन के दुष्परिणाम पर अनेक घटनाएँ बनी हैं। कुछ उदाहरण यहाँ दिए जा रहे हैं, शायद आप भी ऐसे कई उदाहरण जानते होंगे ! यह पढ़कर और आप अपने अनुभव से दूसरों को समझाकर मानव मात्र को रात्रिभोजन त्याग की प्रेरणा दें।
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यह धरती 'बहुरत्ना वसुंधरा' के नाम से पहचानी जाती है, इसमें कोई शक नहीं है। वर्तमान युग जो कि आधुनिकता की चकाचौंध में अपने अस्तित्व को भूलता जा रहा है, उसमें भी कुछ ऐसे रत्न हैं जो कि अपने आत्मोद्धार की ओर प्रगतिशील है ।
जयपुर के एक श्रावक पूज्या गुरुवर्य्याश्री को वंदन करने आए। दोपहर के समय पूज्याश्री के पास खड़े संघ के बहुत से भाइयों ने उन्हें भोजन के लिये घर पर पधारने की विनती की परन्तु उन्होंने किसी को हाँ नहीं कहा। आखिर में पूज्याश्री ने पूछा कि 'आप क्यों मना कर रहे हो।' उन्होंने जवाब दिया कि मुझे रात्रिभोजन का त्याग है और जिसके घर में रात्रिभोजन होता हो उसके घर में दिन में भी खाना खाने का त्याग है। समय बदल गया है। इसलिए हर एक सेठ के घर में रात्रिभोजन तो होता ही है। मैं किस तरह खा सकता हूँ? आप मुझे आयंबिल का प्रत्याख्यान दे दीजिए; मैं यहीं आयंबिल कर लूंगा।' सचमुच श्रावक जी ने उस दिन आयंबिल किया और अपने संकल्प के प्रति दृढ़ रहें। पाठकों! आप इतने कठोर नहीं, तो कम से कम रात्रिभोजन का त्याग करने की प्रतिज्ञा तो करो।
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