Book Title: Ratribhojan Tyag Avashyak Kyo
Author(s): Sthitpragyashreeji
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 56
________________ (39) आजकल की युवा पीढ़ी भी माता-पिता को सही दिशा निर्देश दे सकती है। एक बार की बात है। एक बालक तपोवन (नवसारी) जैसी संस्था में भर्ती था। पू. गुरुदेवों के पावन सान्निध्य में उसमें संस्कार सींचा गया था। संस्था में था तब तक रात्रिभोजन का त्याग था, लेकिन घर जाने के बाद स्वयं की मरजी की बात थी। छुट्टियाँ हुईं। मम्मी पापा आकर मुंबई ले गए। रविवार का दिन था, शाम का समय था। सब चौपाटी पर घूमने गये थे। पुत्ररत्न की इच्छा जाने बिना ठेले वाले को इशारे से पावभाजी की तीन डिश का ऑर्डर दे दिया। थोड़े समय में एक साथ तीन डिश हाजिर हुई। लड़के ने मना किया। उसने कहा, 'गुरुदेव ने मना किया है। रात्रिभोजन, नरकगति का नेशनल हाइवे है। नहीं, पापा नहीं, मुझे नहीं खाना। माँ-बाप ने बेटे को पटाने के लाख उपाय किये, परन्तु बेटा टस से मस नहीं हुआ। बची हुई डिश का आधा-आधा भाग माता-पिता ने चटकारे लेकर खाये। बालक देखता रहा और माँबाप खाते रहे। रात हुई सभी अपने घर गये परन्तु माँ-बाप को नींद नहीं आई। उनका मन विचलित होता रहा। पत्नी ने पति से कहा, 'हम कितने स्वार्थी हैं, गुरुदेव की अमृतमय वाणी क्या हमने नहीं सुनी? रात्रिभोजन का पाप क्या हमने नहीं समझा? सब जानते हुए भी रोज रात को खाते हैं। आज हमने बच्चे को भूखा रखकर अपने गले में पावभाजी किस तरह उतारी? हमने बड़ी भूल की है, कुदरत हमें नहीं छोड़ेगी। अभी बच्चे को उठाएँ और उससे माफी मांगें। जीवनभर के लिए रात्रिभोजन का त्याग करें।' दोनों ने वैसा ही किया। लगता है कि अब बच्चे ही माता-पिता को सही मार्ग पर लाएँगे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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