Book Title: Ratribhojan Tyag Avashyak Kyo
Author(s): Sthitpragyashreeji
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 49
________________ ( 32 ) तवे पर बनाई गई थीं। अचानक छत से एक छिपकली भी तवे पर आ गिरी। तवा लाल सुर्ख धधक रहा था और उस पर पड़ते ही छिपकली के प्राण पखेरू उड़ गए। क्षण भर में वह भी भिंडियों में मिल गई। राजकर्मचारी भोजन करने बैठे तो पहली ही बार भिंडियों के साथ वह भुनी हुई छिपकली भी थाली में आ गई। पहले ही कौर में उसकी पूंछ हाथ में आई । राजकर्मचारी आपे से बाहर हो गए। दूसरे कौर में छिपकली के पैरों पर हाथ पड़ा। तब तो खाने वाले महाशय बड़े ही तमतमाये। दीपक मँगवाकर प्रकाश में देखा तो छिपकली नजर आई। उस दिन उनकी आँखे खुल गईं और रात्रिभोजन का सदा के लिए त्याग कर दिया। सर्वसामान्य दृष्टि से दोष यदि हम सामान्य दृष्टि से विचार करते हैं तो रात्रिभोजन त्याग से शरीररक्षा और आत्मरक्षा दोनों ही होती है, रात्रिभोजन तनमन-धन सभी का नाश करता है। काल की दृष्टि से भी रात्रि का अधिकतम काल पापाचरण का माना गया है क्योंकि उस समय भोगी भोग के रस में लिप्त होते हैं। चोर चोरी करने में व्यस्त रहते हैं। रात को फिरने वाले उल्लू वगैरह पक्षी खुद के भक्ष्य की खोज में होते हैं । शरीर शास्त्रियों का कहना है कि सूर्य अस्त होने पर अपने शरीर में रही हुई ऊर्जा शक्ति कम हो जाती है। ऊर्जा शक्ति की हानि होने से रात्रि में किया हुआ भोजन किस तरह शक्तिदायक बन सकता है। परिणामतः ऊर्जा शक्ति कम होने से रात में लिया हुआ आहार शरीर को नुकसानकारी ही सिद्ध होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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