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पारिवारिक लाभ की दृष्टि से निषेध
मनुष्य जीवन का मुख्य उद्देश्य नर से नारायण की प्राप्ति है, जिसके लिये आत्म-चिन्तन, ध्यान, स्वाध्याय आदि करना आवश्यक है। उन सभी सत्प्रवृत्तियों के लिये उचित समय एवं स्थान की अनुकूलता होना भी परमावश्यक है। शांत और एकांत वातावरण का होना भी जरूरी है। जिस घर में रात्रिभोजन न होता हो, वहाँ महिलाओं को रसाईंघर से जल्दी छुट्टी मिल जाती है और धार्मिक आराधना के लिये उचित समय भी मिल जाता है।
दूसरी बात, जिन घरों में दिन में भोजन बनता है, वहाँ जैन संतों को भी भिक्षा का सहज लाभ मिल जाता है। इससे गृहस्थ परिवारों को सामाजिक कार्यों के लिये भी अधिक समय मिल सकता है। परिवार के संग आप आमोद-प्रमोद हेतु आसानी से भागीदार हो सकते हैं।
तीसरा लाभ यह है कि जल्दी खाने एवं जल्दी सोने से प्रातः जल्दी उठना होता है, जो आत्म-साधना, स्वास्थ्य एवं स्वाध्याय के लिये सर्वोत्तम समय माना जाता है अतः पारिवारिक दृष्टि से भी रात्रिभोजन का त्याग किया जाना गुणकारी है।
स्वास्थ्य लाभ की दृष्टि से निषेध
सूर्य के प्रकाश में भोजन का निर्माण कर उसी प्रकाश में जो उसका आसेवन (भोजन) करता है, वह अनेक बीमारियों से बचता है। लेकिन वर्तमान में वह इस बात को भुला कर अपने आपको रोगग्रस्त एवं कर्मों के बंधनों में बाँधने की प्रवृत्ति को प्रोत्साहित कर रहा है। अस्पतालों में बढ़ती भीड़ इसका प्रतिफल है।
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