Book Title: Ratribhojan Tyag Avashyak Kyo
Author(s): Sthitpragyashreeji
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 39
________________ (22) होती है क्योंकि भोजन करके सो जाने पर शरीर की सारी ऊर्जा भोजन पचाने में ही व्यय हो जाती है। जब किया हुआ भोजन नहीं पचता तो विविध प्रकार के रोग उत्पन्न हो जाते हैं। रुग्ण व्यक्ति न आत्म-साधना कर सकता है, न ज्ञान-साधना कर सकता है और न ध्यान-साधना ही कर सकता है। इस दृष्टि से रात्रि का भोजन स्वास्थ्य के लिए अहितकर है। कुछ लोगों का तर्क है कि यदि रात्रि को आर्द्र आहार के स्थान पर सूखा आहार लिया जाये तो पाचन की उतनी समस्या नहीं होगी, किन्तु सूखे पदार्थ के उपयोग की बात भी अनुचित है। क्योंकि जब रात्रि में चारों प्रकार के आहार में से कोई भी आहार ग्राह्य नहीं है तो सूखे पदार्थ ग्राह्य कैसे हो सकते हैं? सूखे पदार्थों का आहार भी पाचन के लिए भी वैसा ही है जैसा आर्द्र पदार्थ का आहार। प्रकृति और पर्यावरण की दृष्टि से निषेध प्रकृति की दृष्टि से भी रात्रिभोजन त्याज्य है। सामान्य रूप से चिड़िया, कबूतर, तोता, कौआ आदि पक्षी संध्या होने के साथ ही अपने-अपने घोंसलों में चले जाते हैं। ये पक्षी सूर्यास्त के बाद न तो दाना चुगते हैं और न ही जल पीते हैं और न ही रात के समय उड़ते हैं। प्रातः सूर्योदय होने पर ही वे दाना-पानी चुगने निकलते हैं। इससे सिद्ध होता है कि दिन में भोजन और रात में विश्राम यही प्रकृति का सहज क्रम है। रात को या तो हिंसक पशु अपना शिकार ढूँढने निकलते हैं या फिर आधुनिक वातावरण में रहने वाले शहरी पशु ही रात को खाते हैं। मनुष्य के लिये प्राकृतिक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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