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रहता है उस समय उसके स्वभाव में चिड़चिड़ापन, उत्तेजना, आवेग
आदि दोष स्वाभाविक रूप से पनप उठते हैं, जिससे व्यक्ति का दिमाग हमेशा गरम रहता है। उक्त तीनों ही बातें परस्पर में एकदूसरे से सम्बन्धित एवं एक दूसरे के पूरक हैं। यदि पेट नरम रहने लगे तो सिर स्वतः ठंडा रहने लग जाता है। इससे स्पष्ट होता है कि आहार को संयमित, सात्त्विक एवं मर्यादित मात्रा में ग्रहण करना कितना आवश्यक है।
आयुर्वेद के सिद्धान्त के अनुसार रात्रिभोजन पूर्ण हानिकारक है, क्योंकि भोजन करने के बाद तीन घंटे तक सोना नहीं चाहिये। जबकि रात्रिभोजी तो अक्सर भोजन के पश्चात् शीघ्र ही सो जाते हैं; इससे पर्याप्त पानी नहीं पी पाते हैं। सोने से पाचन तन्त्र मंद होने के कारण भोजन पूर्ण रूप से एवं शीघ्र पच नहीं पाता, उसका रस नहीं बन पाता। अतः रात्रिभोजन से अकारण ही पेट की अनेक व्याधियाँ हो सकती हैं। पेट की व्याधि के कारण आँख, कान, नाक, सिर आदि की बीमारियाँ आने में समय नहीं लगता है।
एक बात यह भी है कि सूर्य के प्रकाश में सूक्ष्मजीवों की उत्पत्ति नहीं होती, क्योंकि सूर्य का प्रकाश सूक्ष्मजीवों के लिये अवरोधक तत्त्व है। इस दृष्टि से बड़े-बड़े ऑपरेशन हमेशा दिन के समय में ही होते है। दूसरी बात यह उल्लेखनीय है कि भोजन के पाचन के लिये जरूरी ऑक्सीजन का प्रमाण सूर्य की उपस्थिति में मिलता है।
__ सारतः शारीरिक एवं चिकित्सक दृष्टि से भी रात्रिभोजन करना महान् हानिकारक है।
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