Book Title: Ratribhojan Tyag Avashyak Kyo
Author(s): Sthitpragyashreeji
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 45
________________ (28) ऐसा नहीं है, आज जैनेतर एवं स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहने वाले सभी लोग रात्रिभोजन का त्याग करते हैं। रात्रिभोजन से स्वास्थ्य प्रतिकूल होने पर चिकित्सा के लिये समय, पैसे आदि का दुरुपयोग होता है व दैनिक कार्य की व्यवस्था में बाधा आती है। अत: रात्रिभोजन में स्वास्थ्य, समय, पैसे आदि सब की हानि ही होती है, लाभ तो लेशमात्र भी दिखाई नहीं देता है। अत: प्रत्येक दृष्टि से रात्रिभोजन का निषेध सर्वथा युक्ति युक्त है। चिकित्सा की दृष्टि से निषेध एक प्रचलित कहावत है कि- पेट को नरम, पांव को गरम, सिर को रखो ठंडा'। जो पेट को नरम रखता है, सिर को ठंडा रखता है, अर्थात् गुस्सा नहीं करता है और पांव को गरम रखता है अर्थात् रक्तसंचार को नियमित रखता है उसे कभी भी डॉक्टर के पास जाने की आवश्यकता नहीं पड़ती है। आजकल व्यक्ति पेट को नरम और लाइट रखने के बदले टाईट रखने लगे हैं। भूख के बिना भी दिनभर खाते रहना, मन की तृप्ति के लिये कुछ न कुछ चबाते रहना, शरीर की आवश्यकता से अधिक भोजन पेट में डालते रहना, पेट को नरम रखने के बजाय कठोर रखने के कार्य है। जहाँ पेट नरम नहीं रहता है वहाँ पांव गरम नहीं रह सकते हैं और सिर भी ठंडा नहीं रह सकता है क्योंकि रक्तचाप असामान्य हो जाता है। पेट में ढूंस-ठूस कर खाद्य पदार्थ डालने से उदर सम्बन्धी कई रोग पैदा हो जाते हैं। हम देखते हैं कि जब व्यक्ति रोगग्रस्त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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