Book Title: Ratribhojan Tyag Avashyak Kyo
Author(s): Sthitpragyashreeji
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 43
________________ (26) (भोजन पचाने वाला केन्द्र) सक्रिय होता है, जिससे भोजन आसानी से पच जाता है। जबकि रात में किया हुआ भोजन बराबर पच नहीं पाता है। अपच में भोजन की निरन्तरता बनाये रखने से शरीर अनेक अवांछित व्याधियों का शिकार हो जाता है। हम देखते हैं कि वर्षाकाल में अनेक बार आठ-दस दिन सूर्य के प्रकाश का अभाव हो जाता है, उन दिनों में अग्निमांद्य, अपच आदि की शिकायतें हो जाती हैं। इससे स्पष्ट हो जाता है कि सूर्य ऊर्जा का आहार पाचन से घनिष्ठ सम्बन्ध है। रात्रिभोजन से अनिद्रा, उच्चरक्तचाप, हृदयरोग, दमा, अग्निमांद्य, चिड़चिड़ा स्वभाव आदि बीमारियों का प्रकोप होने की संभावनाएँ अधिक रहती हैं तथा इन बीमारियों के होने के बाद इनसे शीघ्र राहत पाना भी कठिन होता है। सूर्योदय के साथ फैली हुई सूर्य की ऊर्जा व ऊष्मा के कारण सहनशक्ति, पाचनशक्ति, रोग प्रतिरोधात्मक शक्ति विकसित होती है। आज तो सूर्य के माध्यम से अनेक चिकित्साएँ हो रही हैं। सूर्य किरण चिकित्साओं से विकट से विकट बीमारियों का निवारण हो रहा है। क्षय रोगी के कपड़ो में व्याप्त कीटाणु जो गर्म पानी में उबालने पर भी नष्ट नहीं होते हैं, वे सूर्य की आतापना से नष्ट हो जाते हैं। अतः सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त से पूर्व का काल ही भोजन के लिये सब प्रकार से उचित व प्रामाणिक काल है। रात में भोजन करने से विद्युत आदि का अनावश्यक व्यय होता है तथा अगर कभी विद्युत अवरुद्ध हो तो मोमबत्ती, लालटेन से काम चलाना पड़ता है। बिजली की रोशनी में काम करने के अभ्यासी लालटेन-मोमबत्ती में साफ नहीं देख पाते हैं। अतः कीटपतंगें आदि भोजन सामग्री के माध्यम से खाने में आ सकते हैं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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