Book Title: Ratribhojan Tyag Avashyak Kyo
Author(s): Sthitpragyashreeji
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 20
________________ (3) भी निरर्थक हो जाता है, तब भोजन जो मुख्य रूप से हमारी क्षुधा को शांत करता है, साथ ही वह हमारे शारीरिक, मानसिक और बौद्धिक सभी क्षेत्रों को प्रभावित करता है। तब उसे तो और भी अधिक सजगता के साथ ग्रहण किया जाना चाहिए। सर्वप्रथम तो जब हमें अच्छी भूख लगे तब ही भोजन ग्रहण करना चाहिए और वह भी निर्धारित समय पर, ये सब हमारी जीवन शैली और आदतों पर निर्भर करता है। हम जैसी आदत डालते हैं शरीर को वैसी ही भूख लगती है अतः हमें उसी समय की आदत डालनी चाहिए जब प्रकृति हमारे शारीरिक यंत्रों को और अधिक सक्रिय कर सके। साथ ही जब हमें गहरी भूख लगती है तो पेन्क्रियाज (अग्नाशय) और आमाशय अधिक सक्रिय हो जाते हैं। यदि उस समय प्रकृति के द्वारा पर्याप्त प्राण ऊर्जा मिल जाये तो हमारी स्वयं की ऊर्जा कम खर्च होती है। प्रात:काल सूर्योदय के एक घंटे पश्चात् हमारा आमाशय सक्रिय होता है तथा उसके दो घंटे पश्चात् अग्नाशय अधिक सक्रिय होता है। इस समय किया गया प्रात:कालीन भोजन सर्वाधिक लाभकारी होता है तथा भोजन का पाचन सरलता से होता है। सूर्यास्त के दो घंटे पश्चात् आमाशय तथा उसके दो घंटे पश्चात् पेन्क्रियाज (अग्नाशय) की सक्रियता न्यून हो जाती है, क्योंकि प्रकृति प्रदत्त प्राण ऊर्जा का प्रवाह उस समय प्राप्त नहीं होता, अतः भोजन के लिए यह समय अनुचित है। बिना भूख के भोजन करना एवं असमय में भोजन करना भी लाभकारी नहीं है। हमारे भोजन के पाचन में बाह्य प्रकृति प्रमुख स्थान रखती है तथा सूर्य की उपस्थिति में किया गया भोजन ही सर्वाधिक लाभकारी है। किसी कवि ने कहा है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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