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रात्रिभोजन त्याग आवश्यक क्यों?
आज के भौतिक चकाचौंध की दुनियाँ में मनुष्य जीवन का परम लक्ष्य विस्मृत हो रहा है। पाश्चात्य संस्कृति केवल भोगविलासिता के साधन जुटाने की ही प्रेरणा दे रही है। जबकि मानव देह का मुख्य लक्ष्य है अनाहारी पद की प्राप्ति । परन्तु जब तक जीवन है तब तक यह संभव नहीं कि हम आहार का परित्याग कर सकें। जन्म लेने के साथ ही इसकी आवश्यकता प्रारम्भ हो जाती है। हम देखते हैं जब बच्चा जन्मता है, जन्म के साथ ही रुदन की क्रिया शुरू कर देता है और माता द्वारा दूध पिलाते ही वह शान्त हो जाता है। इससे सिद्ध होता है कि जीव की सर्वप्रथम आवश्यकता भोजन है।
'जैसा खावे अन्न वैसा होवे मन, जैसा पीये पानी वैसी होवे वाणी'
इस प्राचीन कहावत से ज्ञात होता है कि आहार हमारे जीवन को सबसे अधिक प्रभावित करता है। आहार और मन का घनिष्ठ सम्बन्ध है । अतः आहार कैसा हो, कब हो और कितना हो? इन बिन्दुओं पर प्रकाश डालना आवश्यक है।
आहार कैसा हो?
प्राचीन ऋषियों व साधकों ने गहन अनुभव के आधार पर सात्त्विक सदाचारी, संस्कारी एवं दीर्घायु जीवन जीने के लिए शाकाहार का निर्देश किया है। अपवादतः इस सम्बन्ध में विधि
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