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सभी धर्म रात्रिभोजन को महापाप मानते हैं। आयुर्वेदशास्त्र के अनुसार रात्रिभोजन करने से स्वास्थ्य हानि, स्वभाव में उग्रता, कषायों का वर्धन, रोगों को आमंत्रण आदि कई अनिश्चित कार्य होते हैं। टी. हार्टली हेनेसी ने अपनी पुस्तक Healing by Water"
सूर्यास्त के पूर्व भोजन का समर्थन किया है। डॉक्टरों के अनुसार वर्तमान की ९०% बीमारियों का कारण हमारी आहार पद्धति है। रात्रिभोजन करने पर धार्मिक क्रिया, प्रतिक्रमण, शुभ ध्यानादि नहीं हो सकते। अज्ञानी पक्षी भी रात्रिभोजन नहीं करते, तब इस पाप को अनंत दुःख का मूल समझ कर मानव को भी रात्रिभोजन का त्याग करना चाहिए।
आगम एवं आगमिक व्याख्या ग्रन्थों की दृष्टि से निषेध
सर्वज्ञ अरिहंत परमात्मा अपनी त्रिकालवर्ती दृष्टि से सब कुछ जानते हैं, उन्हें वैज्ञानिकों की भाँति माइक्रोस्कोप, टेलीस्कोप या प्रयोगशालाओं की आवश्यकता नहीं होती। उन्होंने रात्रिभोजन को महापाप बताते हुए सर्वथा त्याज्य बताया है। वैज्ञानिक खोजों का तो रोज खंडन-मंडन होता रहता है, क्योंकि विज्ञान विकासशील है पर सर्वज्ञ - दृष्टि सम्पूर्णतया विकसित है। वह जो कुछ कहती है सर्वथा और सर्वदा के लिए सत्य होता है।
जैन आगमों में भोजन के विषय में चार विकल्प बताये गये हैं - १. दिन में बनाया हुआ दिन में खाना, २ . दिन में बनाया हुआ रात में खाना, ३. रात में बनाया हुआ दिन में खाना, ४. रात में बनाया हुआ रात में खाना । इन चारों विकल्पों में से पहला विकल्प ही आचरण करने योग्य है। इससे सिद्ध होता है कि हमें अपना भोजन दिन में बनाकर दिन में ही कर लेना चाहिये ।
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