Book Title: Ratribhojan Tyag Avashyak Kyo
Author(s): Sthitpragyashreeji
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

View full book text
Previous | Next

Page 32
________________ (15) चौमासे में विशेष पाप का त्याग और आराधना करना ऐसा अन्य दर्शन भी बताते हैं। जैन दर्शन बताता है कि चातुर्मास के समय में विशेष जीवों की उत्पत्ति होती है इसलिये चौमासे में विशेष अभिग्रह धारण करना चाहिये। स्कंदपुराण में उल्लेख है कि जो प्रतिदिन एक बार भोजन करता है, वह अग्निहोत्र का फल प्राप्त करता है और जो सूर्यास्त के पूर्व ही भोजन कर लेता है उसे घर बैठे तीर्थयात्रा का फल प्राप्त होता है। जिस तरह स्वजन और सम्बन्धियों की मृत्यु होने पर मनुष्य को सूतक लगता है तो फिर सूर्य के अस्त होने पर भोजन किस तरह कर सकते हैं ? अत: सूर्यास्त के बाद रात्रिभोजन कदापि करने योग्य नहीं है।३१ मज्झिमनिकाय के कीटागिरिसूत्र में कहा गया है किएक समय बड़े भारी भिक्षु संघ के साथ भगवान् काशी (जनपद) में चारिका करते थे। वहाँ भगवान् ने भिक्षुओं को आमंत्रित किया और कहा 'भिक्षुओं! मैं रात्रिभोजन से विरत हो भोजन करता हूँ। रात्रिभोजन छोड़कर भोजन करने से आरोग्य, उत्साह, बल, सुखपूर्वक विहार का अनुभव करता हूँ। आओ, भिक्षुओं! तुम भी रात्रिभोजन विरत हो भोजन करो, रात्रिभोजन छोड़कर भोजन करने से तुम भी उनका अनुभव करोगे।' इस प्रकार वैदिक एवं बौद्ध परम्परा में भी रात्रिभोजन का निषेध किया गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66