Book Title: Ratribhojan Tyag Avashyak Kyo
Author(s): Sthitpragyashreeji
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 36
________________ ( 19 ) होता है। कभी-कभी तो विषैले कीटाणुओं के कारण हिंसा के अलावा अपने प्राणों से भी हाथ धोना पड़ जाता है एवं अनेक रोगों का अकारण ही शिकार होना पड़ता है। तीसरा दोष यह है कि रात का समय तमस् (अंधकार) का समय होता है, अतः सात्त्विक से सात्त्विक आहार भी रात के समय में तामसिक बन जाता है। तामसिक आहार के सेवन से क्रोध, हिंसा, भय, घृणा, चंचलता आदि विकारों से मानव ग्रसित होकर पतन की राह पर भटक जाता है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से निषेध आधुनिक चिन्तकों का तर्क है कि आगम और आगमेतर साहित्य में रात्रिभोजन - विरमण व्रत के सम्बन्ध में जिन दोषों की सूची प्रस्तुत की गई है उनमें से बहुत से दोष अन्धकार के कारण होते हैं । अन्धकार में जीव-जन्तु आदि दिखाई नहीं देते, पर आज विज्ञान की अपूर्व देन से हमें विद्युत उपलब्ध है। विद्युत के तीव्र आलोक में सूक्ष्म से सूक्ष्म वस्तु भी सहज रूप से देखी जा सकती है इसलिए जहाँ तक देखने का प्रश्न है वहाँ विद्युत ने उसका हल कर दिया है। अतः जीव-जन्तु के भक्षण का अब प्रश्न ही नहीं रहता। आगम और आगमेतर साहित्य में जन्तु आदि की विराधना की जो बात बताई गई है, वह स्थूल है और प्रत्येक व्यक्ति को समझ में आ सकती है। हमारी दृष्टि से सूर्य के प्रकाश में जो विशेषता है वह विशेषता विद्युत के प्रकाश में नहीं है। चाहे वह कितना ही तीव्र और चमचमाता हुआ क्यों न हो। हीरे आदि जवाहरात Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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