Book Title: Ratribhojan Tyag Avashyak Kyo
Author(s): Sthitpragyashreeji
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 33
________________ (16) आध्यात्मिक लाभ की दृष्टि से निषेध आध्यात्मिक दृष्टि से रात्रिभोजन त्यागना बहुत बड़ा तप का लाभ माना गया है। रात्रिभोजन त्याग की महत्ता बताते हुए ज्ञानी पुरुषों ने लिखा है- “जो श्रेष्ठ बुद्धि वाले विवेकी मनुष्य रात्रिभोजन का सदैव के लिये त्याग करते हैं, उनको एक माह में १५ दिन के उपवास का फल प्राप्त होता है।"३३ यह समझने की बात है कि रात्रिभोजन त्यागने से बिना किसी कष्ट के सहज रूप से १५ दिन की तपस्या का फल मिल जाता है। इसके अतिरिक्त रात्रिभोजन का त्याग करने से प्रमाद, आलस्य, सुस्ती आदि दोष भी दूर होते हैं। अप्रमत्तता, जागरूकता, सक्रियता का विकास होता है, आत्मा पुष्ट बनती है, धार्मिक आराधनाएँ सम्यक् प्रकार से सम्पन्न होती हैं। इस प्रकार रात्रिभोजन त्याग से कई आध्यात्मिक लाभ प्रत्यक्ष में दिखाई देते हैं। रात्रिभोजन त्याग का पालन करने से कर्मों की निर्जरा, गहरी निद्रा, धर्माराधना, नीरोगता, दीर्घायु आदि लाभ सहज में प्राप्त होते हैं। जो लोग रात्रिभोजन नहीं करते हैं वे सायंकालीन प्रतिक्रमण भी कर सकते हैं। इतना ही नहीं, रात्रि में सोने से पूर्व प्रभुभक्ति, ध्यान आदि में भी मन लगता है। पारिवारिक सदस्यों को भी सायंकालीन व रात्रिकालीन धार्मिक क्रियाओं से वंचित नहीं रहना पड़ता है। ___इस प्रकार जैन धर्म में रात्रिभोजन का जो निषेध है उसके पीछे आरोग्य की दृष्टि भी है, अहिंसा की दृष्टि भी है और तप की दृष्टि भी है। तीनों ही दृष्टियों से रात्रिभोजन त्याज्य है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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