Book Title: Ratribhojan Tyag Avashyak Kyo
Author(s): Sthitpragyashreeji
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 14
________________ (xiii ) होने पर भी रात्रिभोजन त्याग को लेकर अनेक ग्रन्थों, अनेक धर्मों और अनेक दार्शनिक मतों में समानता है। जैन धर्म के साथ-साथ बौद्ध धर्म, हिन्दू धर्म में भी रात्रिभोजन को पाप कहा गया है। यदि जैन आगम यह संदेश देता है कि रात्रिभोजन नरक का द्वार है तो हिन्दूशास्त्र जैसे महाभारत, मार्कण्डेय पुराण, यजुर्वेद, गीता में भी रात्रिभोजन को महापाप बताया गया है। प्रस्तुत पुस्तक में अत्यंत सहज, सुगम, सरल, ओजस्वी पूर्ण शैली में रात्रिभोजन त्याग के विचारों को प्रस्तुत किया गया है, साध्वी श्री ने रात्रिभोजन त्याग को जैन धर्म-दर्शन एवं जैनेतर धर्म-दर्शन की दृष्टि से भी समझाने का प्रयत्न करते हुए विविध दृष्टियों से रात्रिभोजन के दुष्परिणामों पर प्रकाश डाला है। इस प्रथम संस्करण के प्रकाशन के अवसर पर सरल स्वभावी, मृदुभाषी डॉ. श्रीप्रकाश पाण्डेय एवं डॉ. विजय कुमार के हम आभारी हैं जिन्होंने इस पुस्तक की प्रूफ रीडिंग एवं मुद्रण सम्बन्धी व्यवस्थाओं में अपना अमूल्य समय एवं सहयोग दिया। इस पुस्तक के संशोधन के लिए हम प्रतिभा सम्पन्न श्रीमान् राजेन्द्र गोलेछा के भी आभारी हैं जिन्होंने अपने व्यस्त जीवन में इसके लिए समय निकाला। अर्तमन से यही अभीप्सा है कि यह पुस्तक समस्त स्वाध्यायी वर्ग के लिए उपयोगी एवं मार्गदर्शी बने एवं हम सभी आत्मकल्याण के मार्ग पर अग्रसर हो सकें। अंशू जैन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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