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रहा कि यह मुझे चिढ़ा रहा है, इसलिये दुःखी हो रहा है। भले ही कोई सामान्य बात कर रहा हो, पर हम उसे अपने ऊपर लेकर व्यर्थ ही दुःखी होते रहते हैं ।
टीकमगढ़ में एक भाई जी थे। वे जानते तो कुछ नहीं थे, मगर पंडित बन गये। प्रवचन कर रहे थे । प्रवचन के बाद एक भाई ने भजन गाया । "मैंने बहुतेरे पंडित देखे, पर पेट कतरनी, बाहर से कुछ और।" इस भजन को सुनकर उन पंडित को लगा कि यह तो हमारे ऊपर ही कह रहा है, सो बाद में वे उस भाई पर बिगड़ गये, लड़ने लगे, उसे दो थप्पड़ जड़ दिये, कहने लगे- 'अरे! तुमने तो हम पर ढाल कर ही भजन कहा है।' सभी लोग समझ गये, उन्होंने स्वयं बता दिया कि वे कैसे पंडित हैं । फिर वहाँ उन पंडित जी की जो दशा की जानी चाहिये थी, सो लोगों ने की। कहते हैं, चोर की दाड़ी में तिनका । चोर ऐसे ही तो पकड़े जाते हैं ।
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एक बार सागर विद्यालय में किसी की चीज चोरी चली गई। तो अब यह हुआ, कि चोर को कैसे पकड़ा जाये । तो क्या उपाय किया गया कि प्रधान अध् यापक ने एक छोटे कमरे में एक देवी के नाम का डंडा रख दिया और उसमें कुछ तेल, कोयला वगैरह लगवा दिया और कह दिया कि देखो बच्चो ! वहाँ एक देवी का डंडा रखा है, सभी लड़के बारी-बारी से उस डंडे को छूकर आयेंगे । जिसने उस चीज को चुराया होगा, वह तो उसमें चिपक जायेगा और जिसने नहीं चुराया होगा, वह नहीं चिपकेगा । तो सभी लड़के बारी-बारी से छूकर आते गये और उधर प्रधानाध्यापक दरवाजे पर बैठकर सबका हाथ देखते गये कि इसने डंडा छुआ कि नहीं । आखिर जिस बालक ने वह चीज चुराई थी, उसने डंडा न छुआ। यह सोचकर कि मैं डंडे मे चिपक जाऊँगा । वहाँ प्रधानाध्यापक ने देखा कि उसके हाथ में कोयला लगा ही न था, तो समझ लिया कि इसी ने चुराया है और उसे झट पकड़ लिया। यदि कोई सामान्य बात भी कही जाये तो जिसमें वह बात होती है वह सोचता है कि ये मुझ पर ढालकर ही कह रहे हैं। अभी कोई बात पाप की बतायें कि ऐसा पाप करना ठीक नहीं है, तो जो वह पाप करता होगा वह सोचेगा कि ये तो हमें ही कह रहे हैं।
स्व को छोड़कर पर में दृष्टि देना और व्यर्थ की कल्पनायें करना, उसी का DU 349 S