Book Title: Ratnatraya Part 01
Author(s): Surendra Varni
Publisher: Surendra Varni

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Page 753
________________ चौदह गुणस्थानों का स्वरूप, चौदह जीव समास, चौदह मार्गणाओं का वर्णन प्रवचन से ही जाना जाता है। जीवों के एक सौ साढ़े निन्यानवै लाख करोड़ कुल, चौरासी लाख जाति के योनिस्थान प्रवचन से ही जाने जाते हैं। चार अनुयोग, चार शिक्षाव्रत, तीन गुणव्रत तथा चार गतियों के भेद, सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यकचारित्र का स्वरूप भगवान् के कहे आगम से ही जानते हैं। बारह भावना, बारह तप, बारह अंग, चौदह प्रकीर्णकों का स्वरूप आगम से ही जाना जाता है। उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी काल का चक्र, इसमें छ:-छ: काल के भेदों में पदार्थ की परिणति के भेदों का स्वरूप आगम से ही जाना जाता है। कुलकर, चक्रवर्ती, तीर्थंकर, बलदेव, वासुदेव, प्रतिवासुदेव इत्यादि की उत्पत्ति, प्रवृत्ति, धर्मतीर्थ का प्रवर्तन, चक्री का साम्राज्य, वासुदेव आदि के वैभव, परिवार, ऐश्वर्य आदि आगम से ही जानते हैं। भगवान् सर्वज्ञ वीतराग देव ने समस्त लोक-अलोक के अनंतानंत द्रव्यों को भूत, भविष्य , वर्तमान कालवर्ती पर्यायों सहित एक समय में युगपत् क्रमरहित, हस्त की रेखा समान, प्रत्यक्ष जाना-देखा है, उसी सर्वज्ञकथित समस्त वस्तु के स्वरूप को सात ऋद्धि व चार ज्ञान के धारी गणधरदेव ने द्वादशांगरूप में रचना की है। इस पंचमकाल में साक्षात् अरहंत भगवान् का अभाव है। इस समय हम सब अल्पज्ञों को मोक्षमार्ग का रास्ता दिखाने वाले शास्त्र ही हैं। यद्यपि देव (अरहंत भगवान) की प्रतिमा से मूक उपदेश प्राप्त होता है, पर वह भी मंदिर में रहकर कितनी देर तक प्राप्त किया जा सकता है? गुरु के द्वारा भी मौखिक उपदेश दिया जाता है, किन्तु वह भी कितनी बार? पहली बात तो आज सद्गुरु ही बहुत कठिनता से और बड़े भाग्य से दिखाई देते हैं। अतः गुरु प्रतिदिन दर्शन देते रहें, यह भी संभव नहीं है। आज मिले, कल नहीं। वे तो रमतेजोगी हैं, वन-वन विचरते हैं। क्या जाने किधर निकल _0_753_n

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