Book Title: Ratnatraya Part 01
Author(s): Surendra Varni
Publisher: Surendra Varni

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Page 1
________________ भूमिका मंगलाचरण मंगलमय मंगलकरण, वीतराग विज्ञान । नामो ताहि जातें भये, अरहंतादि महान।। जो विद्यादि सागर सुधी, गुरु हैं हितैषी। शुद्धात्म में निरत, नित्य हितोपदेशी।। वे पाप-ग्रीष्मऋतु में, जल हैं सयाने। पूर्णां उन्हें सतत केवलज्ञान पाने।। रत्नत्रय आत्मा को परमात्मा बनाने का मार्ग है। सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान व सम्यक्चारित्र को रत्नत्रय कहते हैं। आचार्य उमास्वामी महाराज ने सूत्र दिया है –“सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्राणि मोक्षमार्गः" । सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान व सम्यक्चारित्र की एकता ही मोक्षमार्ग है। इस रत्नत्रय को जो धारण करता है उसका कल्याण होता है, उसे अनन्तसुख स्वरूपी मोक्ष की प्राप्ति होती है। संसार विषम समस्या रूप है। यहाँ हर प्राणी दुःखी और संतप्त है। संसार के दुःखों से छूटने का एकमात्र उपाय रत्नत्रय धारण करना है। कल्याण का इसके अतिरिक्त और कोई दूसरा रास्ता नहीं है। हम लोग कल्याण के अर्थ सही प्रयत्न तो करना नहीं चाहते और कल्याण की इच्छा करते हैं, सो यह कैसे हो सकता है? कल्याण तो कल्याण के मार्ग से ही होगा। एक बार एक महात्मा जी ने अपने भक्त पर प्रसन्न होकर कहा कि बोल, तू क्या चाहता है? उसका लड़का नहीं था, अतः उसने लड़का ही माँगा। 01

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