Book Title: Ratnatraya Part 01
Author(s): Surendra Varni
Publisher: Surendra Varni

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Page 7
________________ चीन में कन्फूशियस नाम के एक दार्शनिक सन्त हुए हैं। वे श्रद्धा, निष्ठा का जनता को उपदेश देते थे। श्रद्धा, निष्ठा की चर्चाएँ उनसे किया करते थे। एक दिन कन्फूशियस ने पास बैठे एक व्यक्ति से पूछा-गृहस्थी में रहकर आपको कितनी चीजों की आवश्यकता है। उसने कहा-कम से कम तीन चीजों की आवश्यकता अवश्य हुआ करती है- (1) धन-धान्य (2) परिवार पर कोई आपत्ति, आक्रमण हो जाये तो उसके किये शस्त्र और (3) निष्ठा, श्रद्धा (सम्यग्दर्शन)। कन्फूशियस ने फिर पूछा कि इन तीनों चीजों में से अगर आपको कोई एक चीज छोड़नी पड़े, तो सबसे पहले आप किसे छोड़ेंगे? उसने कहा-शस्त्र छोड़ सकते हैं, उसके बिना भी काम चल सकता है। फिर कन्फूशियस ने पूछा-यदि शेष दोनों में भी अगर कोई एक चीज छोड़नी पड़े तब आप क्या छोड़ेंगे? उसने गौरव से कहा-अगर धन-धान्य भी छोड़ना पड़े तो उसे छोड़ सकते हैं लेकिन श्रद्धा को प्राण निकलने पर भी नहीं छोड़ सकते। तलवार टूट जाती है, परन्तु उसकी धार, उसका पानी नष्ट नहीं होता, वह बना रहता है। उसी प्रकार मनुष्य मर जाये, मगर उसकी श्रद्धा कभी खत्म नहीं होनी चाहिये। संसार में दो प्रकार के पदार्थ हैं, एक चेतन और दूसरे अचेतन। चेतन पदार्थ वे हैं जिनमें जानने की शक्ति है अथवा जो अनुभव कर सकते हैं, सुख-दुःख का वेदन कर सकते हैं। इनके विपरीत अचेतन या जड़ पदार्थ वे हैं जिनमें जानने की, अनुभव करने की शक्ति नहीं है, जो सुख-दुःख का वेदन नहीं कर सकते। जाति की अपेक्षा यद्यपि सभी जीव चेतन जाति के हैं, मूलभूत गुणों की अपेक्षा यद्यपि सबमें समानता है, तथापि उस चेतना-शक्ति की अपेक्षा इन गुणों की अभिव्यक्ति सब में समान नहीं है- बस, यही इनमें पारस्परिक अन्तर है। मनुष्य में उस शक्ति की अभिव्यक्ति अपेक्षाकृत ज्यादा है। पशु-पक्षियों में उससे कम है; मक्खी , चींटी आदि में और कम है; पेड़-पौधों में उससे भी कम हैं, और सूक्ष्म जीवाणुओं (बैक्टीरिया, वायरस इत्यादि जो सब जगह पाये जाते हैं) में तो बहुत ही कम है – इतनी कम कि वे अपनी चेतना-शक्ति को महसूस 070

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