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1. 700 वीरों सहित श्रीपाल राजा पूर्वभव श्रीकण्ठ ने मुनिराज को कोढ़ी कहा था, जिससे उन्हें 700 वीरों सहित कुष्ट रोग हुआ ।
2. समुद्र में मुनिराज को गिराने से धवल सेठ द्वारा इन्हें समुद्र में गिराया
गया ।
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3. समुद्र से मुनिराज को निकाल लेने के कारण श्रीपाल राजा भी समुद्र पार हो गया।
4.
मुनिराज को 'नंगे-निर्लज्ज' अपशब्द कहने से हंस द्वीप में भांडों द्वारा अपवादित किया गया।
5. पूर्व भव में मुनि महाराज को " मारो - मारो” कहकर तलवार निकाली, परन्तु फिर मन परिवर्तन हो गया और तलवार अन्दर रख ली, इसलिए गुणमाला के पिता के द्वारा फांसी की सजा सुनाई गई, परन्तु मुनि पर उपसर्ग न करने के कारण फांसी की सजा से मुक्त हो गया ।
पिछले भवों में किये हुए कर्मों के फलस्वरूप अंजना सती को पति का वियोग बाईस वर्ष तक सहना पड़ा और घोर विपत्ति में जा अनेक दुःखों का
सामना करना पड़ा ।
मछली को जीवनदान देने के कारण मृगसेन के भी प्राणों की रक्षा होती है । अवन्ति देश के शिरिष गाँव में मृगसेन नाम का एक धीवर रहता था। एक बार जब वह शिप्रा नदी में मछलियाँ पकड़ने जा रहा था, तो रास्ते में उसे एक मुनिराज के दर्शन हुए। उन मुनिराज के पास बड़े - 2 राजा-महाराजा व्रत देने के लिए कह रहे थे। वह भी व्रत देने के लिये कहता है । उस समय मुनिराज अवधिज्ञान से इसका भवितव्य जानकर इसे यह नियम देते हैं कि आज तुम्हारे जाल में जो सबसे पहले मछली आयेगी तुम उसे जीवनदान दे देना । और णमोकार मंत्र सिखाते हैं। जब यह नदी में जाल डालता है तो एक बहुत बड़ी मछली इसके जाल में फँस जाती है, लेकिन अपने व्रत के अनुसार यह उस मछली के कान में कपड़े का टुकड़ा बांधकर छोड़ देता है। दूसरी बार जब जाल डालता है तब फिर से यही मछली इसके जाल में आ जाती है। इस प्रकार पांच बार वह उस मछली को जीवनदान देता है। इसी पुण्योदय के कारण अगले भव
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