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एक पिता के दो बेटे थे। एक दिन उसने बड़े बेटे को अत्यधिक सम्पत्ति देकर अलग कर दिया और स्वयं छोटे बेटे के साथ रहने लगा। बड़ा बेटा आचरणहीन था। वह सप्तव्यसनी हो गया, इसलिये उसकी सारी सम्पत्ति व्यसनों में समाप्त हो गई। खाने-पीने के लाले पड़ने लगे, भूखों मरने लगा। एक दिन उसकी पत्नी ने कहा, 'पिताजी बहुत धर्मात्मा
और दानी हैं, गरीबों के मसीहा हैं, जाओ तुम अपने पिता से कुछ माँग लाओ।' उसने अपने पिता को पत्र लिखा कि मैंने अपनी सारी बुरी आदतें सुधार ली हैं और भिखारी बनकर आपके पास दान लेने आ रहा हूँ। __पत्र पढ़ते ही पिता बहुत खुश हुआ। उसने बड़े पुत्र के आगमन पर नगर सजाया, घी के दीपक जलवाये, बैण्ड बाजे बजवाये । एक विघ्न-संतोषी ने छोटे भाई के कान भर दिये कि तुम्हारे पिता जी तुम्हारे साथ अन्याय कर रहे हैं। तुम्हारे आचरणहीन भाई के आगमन पर उसके स्वागत में हजारों रुपये खर्च कर रहे हैं और तुम्हारे लिए आज तक एक फूटी कौड़ी भी खर्च नहीं की, यह तो तुम्हारे साथ सरासर अन्याय है।
छोटा बेटा खेत पर काम कर रहा था। वह सुनते ही पिता के पास आया और आवेश में बोला, 'पिता जी! यह नगर क्यों सजाया गया है? यह हजारों रुपयों का अपव्यय किसलिये किया गया है?' पिता ने कहा, 'बेटा! तुम्हारा बड़ा भाई आ रहा है, उसके लिये।' बेटा बोला- "जिसने आपकी इज्जत मिट्टी में मिलाई, आपको कहीं का नहीं रखा, वो बड़ा भाई ? जो वेश्यागामी है, दुराचारी है, जुआरी है, शराबी है, उसके स्वागत में इतना आयोजन ? और मुझ आचरणवान् के लिये कोई स्वागत नहीं। पिता जी! यह तो मेरे साथ अन्याय हो रहा है।'
किसी ने पूछा कि 'जब कोई दीक्षा लेता है, तब उसका विनोला क्यों निकाला जाता है, इतना स्वागत-सम्मान क्यों करते हैं?' उसका स्वागत-सम्मान इसलिये करते हैं कि वह पाप को छोड़कर धर्म की ओर आ रहा है। यही बात उसके पिता ने कही। 'बेटा! वह भटक गया था,
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