Book Title: Ratnatraya Part 01
Author(s): Surendra Varni
Publisher: Surendra Varni

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Page 792
________________ विनोबा ने अपनी माँ की स्मृति में बहुत-सी महत्वपूर्ण बातें लिखीं। उन्होंने लिखा कि पिता घर में एक अनाथ बच्चे को ले आए और माँ से कहा कि यह भोजन यहीं करेगा। तुम इसे रोज भोजन करा देना। माँ ने उस बच्चे को गरम-गरम भोजन कराया और यह क्रम रोज का हो गया। विनोबा जब खाने बैठते तो माँ ठंडी रोटी भी परोस देती। विनोबा ने एक दिन माँ से पूछ लिया-"माँ! तुम ऐसा भेदभाव क्यों करती हो? उस बच्चे को तो रोज गरम भोजन खिलाती हो और मुझे ठंडा ही परोस देती हो। तुमने तो हमें सदा यही समझाया कि सब मनुष्य समान हैं, सबमें ईश्वर है, इसलिए सबसे समान और अच्छा व्यवहार करना चाहिए?" विनोबा की माँ ज्यादा पढ़ी-लिखी नहीं थी, पर विचार कितने अच्छे थे। विनोबा की माँ ने अपने बच्चों को साम्यभाव की शिक्षा दी थी, सो विनोबा ने अपनी माँ को उलाहना दे दिया। माँ सारी बात सुनकर हँसने लगी। बोली- "विन्या! (विनोबा का घर का नाम) बात तो सही है कि सबके भीतर भगवान् का दर्शन होना चाहिए और सबसे समानता का व्यवहार करना चाहिए, पर क्या करूँ ? मेरे मोह के कारण मैं तुझे अपना बेटा मानती हूँ, सो तेरे भीतर अभी ईश्वर का दर्शन नहीं हो पाता। उस अनाथ बच्चे के भीतर मुझे ईश्वर का दर्शन होता है। जिस दिन तेरे प्रति मेरा मोह घट जाएगा और तेरे भीतर भी मुझे ईश्वर का दर्शन होने लगेगा तो तेरी सेवा भी ईश्वर मानकर करूँगी। अभी तो तू मेरा बेटा है।" कितनी बड़ी बात सहजभाव से कह दी। सबके भीतर आत्मतत्त्व विद्यमान है। सबमें परमात्मा बनने की सामर्थ्य छिपी है। पर अपने ही मोह के कारण वह आत्मतत्त्व हमें दिखाई नहीं देता। जिसकी दृष्टि से मोह का परदा हट जाता है उसे आत्मस्वरूप का दर्शन होने लगता है और सबके प्रति उसके मन में प्रेम, स्नेह और वात्सल्य का भाव सहज ही आ जाता 0_7920

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