Book Title: Ratnatraya Part 01
Author(s): Surendra Varni
Publisher: Surendra Varni

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Page 736
________________ ही हीनाचारी हों, तो वह शिष्यों से शुद्ध आचरण नहीं करा सकेंगे। जो हीनाचारी होगा, वह आहार, विहार, उपकरण, वसतिकादि अशुद्ध ग्रहण करा देगा। जो स्वयं ही आचारहीन होगा, वह शुद्ध उपदेश नहीं कर सकेगा। इसलिये आचार्य को आचारवान् ही होना चाहिये। __ आधारवान् : जिनके जिनेन्द्र का कहा चारों अनुयोग का आधार हो, स्याद्वाद विद्या के पारगामी हों, शब्द विद्या, न्याय विद्या, सिद्धान्त विद्या के पारगामी हों। प्रमाण, नय, निक्षेप द्वारा व स्वानुभव के द्वारा भली प्रकार से जिसने तत्त्वों का निर्णय किया हो, वह आधारवान् है। जिसके श्रुत का आधार नहीं हो वह अन्य शिष्यों का संशय, एकान्तरूप हठ तथा मिथ्याचरण का निराकरण नहीं कर सकेगा। अनंतानंत काल से परिभ्रमण करते आये जीव को अति दुर्लभ मनुष्य जन्म की प्राप्ति, उसमें भी उत्तम देश, जाति, कुल, इन्द्रियों की पूर्णता, दीर्घायु, सत्संगति, श्रद्धान, ज्ञान, आचरण- ये उत्तरोत्तर दुर्लभ संयोग पाकर, यदि अल्पज्ञानी गुरु के पास रहने वाला शिष्य हुआ तो वह सत्यार्थ उपदेश नहीं प्राप्त करने के कारण, अपना स्वरूप यथार्थ नहीं जानकर संशयरूप हो जायेगा तथा मोक्षमार्ग को अतिदूर अतिकठिन जानकर रत्नत्रय मार्ग से विचलित हो जायेगा। सत्यार्थ उपदेश के बिना वह विषय-कषायों में उलझे मन को निकालने में समर्थ नहीं होगा, तथा रोगकृत वेदना में व उपसर्ग परीषहों से विचलित हुये भावों को शास्त्र के अतिशयरूप के उपदेश बिना वह थामने को समर्थ नहीं होगा; यदि मरण आ जाये, तब सन्यास के अवसर में आहारा-पान के त्याग का यथा अवसर देश-काल सहायक-सामर्थ्य के क्रम को समझे बिना शिष्य के भाव विचलित हो जायें आर्तध्यान हो जाये या तो सुगति बिगड़ जायेगी, धर्म का अपवाद होगा, अन्य मुनि भी धर्म में शिथिल हो जायेंगे, यह तो बड़ा अनर्थ है। 0 736_n

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