Book Title: Ratnatraya Part 01
Author(s): Surendra Varni
Publisher: Surendra Varni

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Page 781
________________ अपनी महिमा फैलाने या अपनी प्रसिद्धि बढ़ाने के लिए नहीं हैं। हमारे भीतर दान, पूजा आदि के समय भाव तो यह आना चाहिए कि इससे मेरी कर्मनिर्जरा होगी सब जीवों का कल्याण होगा और वीतराग-मार्ग की महिमा फैलेगी। हम सभी लोग आज ऐसी भावना भाएँ कि हमारे आचरण से, हमारी श्रद्धा और ज्ञान के माध्यम से मोक्षमार्ग की प्रभावना हो। हम अपना जीवन जितना उज्ज्वल बनाएँगे उसे देखकर दूसरों को भी अपना जीवन उज्ज्वल बनाने का भाव उत्पन्न होगा और इस तरह वीतरागमार्ग की आपोआप प्रशंसा होगी। हमें हमारे जीवन मैं जितना आडम्बररहित होकर जिएँगे, जितना सादगीपूर्वक जिएँगे, उतना ही अपना और दूसरे का उपकार होगा। असल में, धर्म हमारी श्वासों में समा जाए तो हर श्वास धर्म का संदेश देने वाली होगी। हमारे मन, वाणी और शरीर के द्वारा सहज ही धर्म प्रकट होगा। यही सच्ची वीतरागमार्ग की प्रभावना है। चीनी यात्री ह्येन सांग ने लिखा है- "मैंने भारतयात्रा के दौरान एक ऐसा वर्ग देखा जिसकी चर्या सूर्योदय से शुरू होकर सूर्यास्त पर समाप्त होती है। समाज में इस वर्ग को विशेष आदर की दृष्टि से देखा जाता है। हमारे आचरण से धर्म की बड़ी प्रभावना होती है, अतः हमें कभी भी अपने आचरण में दोष नहीं लगाना चाहिये। एक बार क्या हुआ, ग्रीष्म की बहुत तपन पड़ी। उस तपन से विह्वल एक चातक का बच्चा अपनी माँ से बोला- माँ! प्यास लगी है। चातकी कहती है-बेटे! हमारे वंश की परम्परा है कि प्यास से प्राण छोड़ देंगे, लेकिन नदी-नालों का पानी नहीं पियेंगे। तब, माँ! कौन-सा पानी पियेंगे? स्वाति नक्षत्र की बूंद को ही पियेंगे। बेटा नहीं माना, मचल गया, बोला-माँ! मैं तो पानी पिऊँगा। बेटा! तुम कहाँ जाओगे? क्या तुम गंगा नदी का पानी पिओगे? उसमें तो शव डाले जाते हैं। बोला- माँ! नहीं 07810

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