Book Title: Ratnatraya Part 01
Author(s): Surendra Varni
Publisher: Surendra Varni

View full book text
Previous | Next

Page 789
________________ किया कि नहीं लांघते हैं इस मूर्ति को, तो स्पष्ट उनके ही विरोधी साबित होते हैं, और ऐसे समय में जिस उद्देश्य को लेकर अपना जीवन बनाया है, उसमें सफल नहीं हो सकते। उद्देश्य क्या था कि जो यथार्थ ज्ञान है, वस्तु का स्वरूप है, वह जगत् के सामने आये, यह उनकी थी धर्म वात्सल्यता। वे दोनों एक निर्णय कर पाये कि एक-एक धागा लें और मूर्ति पर डालकर और यह मानकर कि अब यह मूर्ति ग्रन्थसहित हो गयी, परिग्रहसहित हो गयी, भावों की ही तो बात है। दोनों ने यह तय किया और धागा डालकर मूर्ति भी लांघ गये। अब ऐसा करने में उनके दिल से पूछो जो ऐसा करने को भी तैयार हो सकते हैं धर्मप्रेम की खातिर । अब बाद में दूसरी परीक्षा की। क्या? कि रात्रि के समय चार बजे घंटी बजा करती थी और तब सब विद्यार्थी प्रार्थना किया करते थे। गुरु ने एक दिन सोचा कि आज 4 बजे नहीं, किन्तु दो ही बजे खूब थालियाँ नीचे पटकें व ठोकें जिससे कि अचानक ही सब विद्यार्थी जग जायें, और अचानक जगने पर भय की बात सामने आने पर जिस विद्यार्थी के मन में जो देव बसा होगा वह उसका उच्चारण करने लगेगा। तो दस-पाँच कार्यकर्ता इस बात को निरखते रहे कि कौन विद्यार्थी किस देव का नामोच्चारण करता है? जब थालियाँ खूब पटकने लगे तो सब विद्यार्थी घबड़ाकर उठ पड़े और अपने-अपने इष्टदेव का नाम लेने लगे। उस समय अकलंक, निकलंक को देखा तो वे दोनों णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं पढ़ रहे थे। वे दोनों पकड़ लिए गये और जेल में बंद कर दिए गये। उसका निर्णय किया गया था कि इन दोनों का प्राणघात करो, इन्हें फाँसी पर लटकावो। अब दोनों ही चिंतातुर हुए। रात्रि के समय पड़े हुए हैं, सोच रहे हैं कि हमें फाँसी का डर नहीं। क्या होगा? यह मैं जो कुछ हूँ, वह तो शाश्वत हूँ। यहाँ न रहा, और-कहीं चला गया, पर अभी कुछ अपने लिए धर्मसाधना शेष थी और ज्ञानोपयोग करके विश्व का भी उपकार करना शेष था। ऐसी चिंता में वे पड़े हुए थे। तब जिनभक्ता देवी 0 789

Loading...

Page Navigation
1 ... 787 788 789 790 791 792 793 794 795 796 797 798 799 800