Book Title: Ratnatraya Part 01
Author(s): Surendra Varni
Publisher: Surendra Varni

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Page 756
________________ शास्त्रआगम इनकी उपासना करना, सो प्रवचनभक्ति है। अनुयोगों के ग्रंथों का स्वाध्याय करने से आत्मकल्याण करने की प्रेरणा मिलती है। यदि हमें शान्ति प्राप्त करने की सच्ची लगन है, तो इन चारों अनुयोगों के शास्त्रों का धैर्यपूर्वक वर्षों तक नियमित रूप से स्वाध्याय करना चाहिए। धैर्यपूर्वक वर्षों तक स्वाध्याय न करना बहुत बड़ा दोष है। हम चाहते हैं कि तुरन्त ही सबकुछ समझ में आ जाये। एक राजा को एक बार कुछ हठ उपजी। कुछ जौहरियों को दरबार में बुलाकर उनसे बोला कि मुझे रत्न की परीक्षा करना सिखा दीजिये, नहीं तो मृत्युदण्ड भोगिये । जौहरियों के पाँव-तले की धरती खिसक गई। सभी असमंजस में थे, कि एक वृद्ध जौहरी आगे बढ़ा और बोला- "मैं सिखाऊँगा, पर एक शर्त पर । वचन दो, तो कहूँ।" राजा बोला- “स्वीकार है। जो भी शर्त होगी, पूरी करूँगा।" वृद्ध बोला-"गुरुदक्षिणा पहले लूँगा।" राजा बोला- हाँ हाँ, तैयार हूँ, माँगो क्या माँगते हो? जाओ, कोषाध्यक्ष! दे दो सेठ साहब को लाख करोड़, जो भी चाहिए । वृद्ध बोला- “महाराज! मुझे लाख करोड़ नहीं चाहिए, बल्कि जिज्ञासा है राजनीति सीखने की और वह भी अभी, इसी समय । शर्त पूरी कर दीजिये और रत्न-परीक्षा करने की विद्या ले लीजिए।' राजा बोला- “परन्तु यह कैसे सम्भव है? राजनीति इतनी-सी देर में थोड़े ही सिखाई जा सकती है? वर्षों हमारे मंत्री के पास रहना पड़ेगा।" वृद्ध बोला-"बस, तो रत्न-परीक्षा भी इतनी जल्दी थोड़े ही सिखाई जा सकती है। वर्षों रहना पड़ेगा दुकान पर।'' इतना सुनते ही राजा को अक्ल आ गई। इसी प्रकार धर्मसम्बन्धी बात भी कोई थोड़ी देर में सुनना या सीखना चाहे तो यह बात असम्भव है। यदि धर्म का प्रयोजन व उसकी महिमा का ज्ञान करना है, तो चारों अनुयोगों के शास्त्रों को अत्यंत उपयोगी जानकर धैर्यपूर्वक वर्षों तक उनका स्वाध्याय करना होगा। 0756 m

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