Book Title: Ratnatraya Part 01
Author(s): Surendra Varni
Publisher: Surendra Varni

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Page 751
________________ क्यों डाल रहे हो? तवा थोड़ा गरम हो जाने दो। उसने तवे को गरम होने दिया, तो पाया कि वास्तव में अब रोटी सही और एकदम अच्छी बन रही है। वह बड़ा प्रसन्न हुआ तथा अपने दोस्त को बहुत-बहुत धन्यवाद दिया कि यदि तुम मुझे यह ज्ञान नहीं देते तो मैं कभी अच्छी रोटी नहीं खा सकता था । इसी तरह शिष्य को ज्ञान प्राप्त कराने के आधार गुरु ही हैं। गुरु महाराज बड़े ही मीठे शब्दों में धर्मामृत का पान कराते हैं। अपने पास आने वालों को वे बताते हैं संसार की प्रक्रिया से दूर हटने का ढंग और उसका प्रभाव भी पड़ता है, क्योंकि वे स्वयं उसका पालन करते हैं । जो संसार भ्रमण का अन्त कर मोक्षसुख को प्राप्त करना चाहते हों, उन्हें चाहिये कि वे बहुश्रुतज्ञानी गुरुओं से तत्त्वज्ञान प्राप्त करें । गुरुकृपा के बिना कुछ भी संभव नहीं है। दुर्लभो विषय त्यागः, दुर्लभं तत्त्वदर्शनम् । दर्लभा सहजावस्था, सद्गुरोः करुणां बिना । । गुरु की विनय के बिना तत्त्वदृष्टि प्राप्त होनी संभव नहीं है और न ही उनकी शरणापत्ति के बिना सहजावस्था ही संभव है। जो आप स्वयं पढ़ते हैं तथा अन्य शिष्यों को पढ़ाते हैं, उन बहुश्रुतों की भक्ति संसार परिभ्रमण का नाश करनेवाली है। शास्त्रों की भक्ति भी बहुश्रुतभक्ति है। गुणों में अनुराग करना, वह भक्ति है। जो शास्त्रों में अनुराग करके पढ़ते हैं, शास्त्र के अर्थ को अन्य को बतलाते हैं, धन खर्च करके शास्त्रों को छपवाते हैं, पढ़नेवालों को शास्त्र उपलब्ध करा देते हैं, वह ज्ञानावरण कर्म का नाश करने वाली बहुश्रुत - भक्ति है । यह बहुश्रुत - भक्ति संशय आदि रहित सम्यग्ज्ञान उत्पन्न कराकर क्रम से केवलज्ञान प्रकट करा देती है। बहुश्रुतवन्त-भगति करई, सो नर संपूरन श्रुत धरई । 751 2

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