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करता है। अंत में आठों द्रव्यों का इकट्ठा अर्ध चढ़ाकर अभेद - अखंड की भावना करता हूँ जो कि साक्षात् मोक्ष का उपाय है। ऐसे अनेक व्यक्ति हो गये हैं जिन्होंने जिनेन्द्र भगवान् की अष्ट द्रव्य से पूजा करके उत्तम फल को प्राप्त किया ।
ब्रह्मपुरी नगरी का राजा महासेन बुद्धिमान् तथा जिनभक्त था। उसका जाह्नव नामक पुरोहित था । उसकी भार्या जल से पूजन कर उत्तम फल को प्राप्त किया ।
रत्नसंचय नगर का राजा रत्नशेखर था, यह मुनिभक्त था । इसने मार्ग में सुगन्ध से पूजा की थी तथा उसके फलस्वरूप देवपद प्राप्त किया था ।
श्रीपुर नगर का राजा श्रीधर अक्षत से पूजा करने में दक्ष था। उसने धान्य की बाल सहित तोता को देखकर अक्षत से भगवान् की पूजा करने का भाव किया था, इसके फलस्वरूप वह अक्षत के भाव से क्रम से मोक्ष को प्राप्त हुआ
था ।
मथुरा का राजा श्रीधर्मपाल था, उसकी सर्वगुणसम्पन्न एक पुत्री थी । उस पुत्री को किसी ने पुष्प के बहाने सर्प लाकर दिया था, वह सर्प पुष्पमाला हो गयी। उस पुष्प से उसने भगवान् की पूजा की । उसके फल से वह स्वर्ग को गई । लाट देश के भृगुकच्छ नगर में हालिक नामक पुरुष ने मुनिराज के द्वारा बतलायी हुई चरु से पूजा की थी और उसके फलस्वरूप देव पद प्राप्त किया
था।
मेघ नाम के नगर में रुद्रदत्त की एक पतिव्रता पुत्री थी। उसने दीप से पूजा की थी। उसके फल से वह इस समय स्वर्ग में है, वहाँ से आकर मोक्ष प्राप्त करेगी ।
पोदनपुर नामक नगर में कमलापति नाम का एक राजा था, जो शत्रुरूपी हाथियों को नष्ट करने के लिये सिंह के समान था । उसने धूप से पूजा की थी, उसके पुण्य से वह स्वर्ग को प्राप्त हुआ था ।
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