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दोनों रोगी दवा लेकर चले गये। घर जाकर एक रोगी ने तो ठीक वैसा ही किया, जैसा वैद्य ने कहा था । आँख की दवा आँख में डाल दी और पेट की दवा पेट में। परन्तु दूसरे रोगी ने पुड़िया उलट दी। उसने पेट की दवा आँख में डाल दी और आँख की दवा पेट में डाल दी। आँख में थोड़ा-सा कचरा भी पड़ जाय तो पीड़ा होने लगती है, पर उसने पेट का चूर्ण आँख में डाल दिया। इससे आँख की पीड़ा बढ़ गयी। आँख की दवा ठण्डी होती है, वह पेट में चली गयी तो पेट की पीड़ा भी बढ़ गयी। अब वह वैद्य को गाली देने लगा कि तेरे बाप को मैंने मारा था क्या? वह तो अपनी मौत मरा था। फिर मेरे से किस दिन का बदला लिया है? दूसरे दिन वह दवाखाना खुलने से पहले ही वहाँ जा बैठा। वैद्यजी आये और दवाखाना खोलकर उससे पूछा- कहो, कैसे हो?
वह बोला-कैसे क्या हूँ। वैद्य ने कहा-अरे, क्या हुआ? वह बोला-हुआ क्या? जो तुमने किया, वही हुआ। वैद्य ने कहा-हमने क्या किया?
वह बोला-ऐसी दवा दे दी कि मेरी आँख की पीड़ा भी बढ़ गयी और पेट की पीड़ा भी बढ़ गयी। साफ कह देते कि मैं दवा नहीं देता। मेरे पास ज्यादा रुपया तो हैं नहीं, इसलिये उल्टी दवा दे दी।
वैद्य ने कहा- भाई! पीड़ा कैसे बढ़ गयी? किसी आदमी को दवा जल्दी असर करती है, किसी को नहीं करती, यह तो अपनी-अपनी प्रकृति के अनुसार होता है, पर पीड़ा बढ़ने का तो कोई कारण ही नहीं है।
वह बोला-मैं तो भुक्तभोगी हूँ, मेरी पीड़ा तो बढ़ गयी।
इतने में दूसरा रोगी आया। वैद्य ने उससे पूछा- कहो, तुम कैसे हो? वह बोला–महाराज! बहुत आराम है। एक-दो दस्त लगे, पेट भी ठीक है और आँखें भी ठीक हैं। यह सुनते ही पहला रोगी बोला- देखो, यह पैसेवाला आदमी है, इसको तो बढ़िया दवा दे दी, मेरे को घटिया दे दी। वैद्य ने कहा-घटिया कैसे दे दी? जो दवा उसको दी, वही तुमको भी दी। तुम्हारी पुड़िया कैसी थी? रोगी
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