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अनादिकाल से सभी संसारी प्राणी मिथ्यात्व के वशीभूत होकर इस विकट संसार में दुःख उठा रहे हैं। दर्शनमोह को मिथ्यात्व कहते हैं। इसके दो भेद हैंएक नैसर्गिक (अग्रहीत) दूसरा अधिगमज (गृहीत)।
गृहीत मिथ्यात्व पर के उपदेश (कुदेव, कुगुरु, कुशास्त्र) से होता है। इसका वर्णन तीन मूढ़ता एवं षट् अनायतन नामक अध्याय में आगे किया गया
___ अग्रहीत मिथ्यात्व- जो परोपदेश के बिना ही मिथ्यात्व कर्म के उदय के वश से जीव-अजीवादि सात तत्त्वों का विपरीत श्रद्धान होता है, वह अग्रहीत मिथ्यात्व कहलाता है। यहाँ सात तत्त्वों के विपरीत श्रद्धान का वर्णन किया जा रहा है, जिसे अच्छे प्रकार से समझकर छोड़ देना चाहिए।
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