Book Title: Rambhashuk Samvad
Author(s): Hariprasad Bhagirath
Publisher: Hariprasad Bhagirath

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Page 6
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (५) तीर्थे तीर्थे निर्मलं ब्रह्मवृन्दं वृन्दे वृन्दे तत्त्वचिन्तानुवादः॥ वादे वादे जायते तत्त्वबोधो ___ बोधे बोधे भासते चन्द्रचूडः॥३॥ अर्थ-और तीर्थतीर्थविषे निर्मल ब्रह्मावूद हैं, (अनेक निर्मल शुद्ध ) ब्राह्मणलोग रहते हैं, तिनके वृंदवृंदमें आत्मतत्त्व चिंतनका अनुवाद (वेदांतकी चर्चा ) रहता है, तिस वादवादमें आत्मतत्त्वका बोध होता है, और बोधबोधमें चंद्रशेखरका (ईश्वरका ) साक्षात्कार होता है ॥३॥ - रम्भोवाच ॥ गेहे गेहे जङ्गमा हेमवल्ली वल्ल्या वल्ल्यां पार्वणं चन्द्रबिम्बम् ।। बिम्बे बिम्बे दृश्यते मीनयुग्मं युग्मे युग्मे पञ्चबाणप्रचारः॥ ४॥ अर्थ-रंभा बोली-हे ऋषिराज! घरघरमें चलनेवाली हेमलता रहती है, अर्थात् विचित्र सुंदरी स्त्री सुवर्णकी वेलसमान इधरउधर फिरती है, तिस स्त्रीका मुख पूर्णचंद्रमाके समान है, तहां मुखरूप प्रतिचंद्रमापर दो नेत्र For Private and Personal Use Only

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