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अर्थ-शुकमुनि बोले-हे कामिनी ! स्त्रीके विषयभोगसे होनेवाले सब सुखोंको अनित्य ( नष्ट होनेवाले) और दुःखदायी जानके, जिसने योगाभ्यास धारण नहीं किया, उस नरका जीवना वृथा गया ॥ २३ ॥
रम्भोवाच ॥ विशालवेणी नयनाभिरामा
कंदर्पसम्पूर्णनिधानरूपा॥ भुक्ता न येनैव वसन्तकाले
वृथा गतं तस्य नरस्य जीवितम् ॥ २४॥ अर्थ-रंभा बोली-बहुत अच्छी वेणी केशबंध ( चोटीपटीआदि) से विभूषित, नेत्रोंको सुख देनेवाली, संपूर्ण शरीरमें कामदेवसे भरी हुई ऐसी सुंदरी स्त्री जिसनें वसंत समयमें नहीं भोगी तिस मनुष्यका जोवना व्यर्थ गया ॥ २४ ॥
शुक उवाच ॥ मायाकरण्डी नरकस्य हण्डी
तपोविखण्डी सुकृतस्य भण्डी ॥ नृणां विखण्डी चिरसविता चे
वृथा गतं तस्य नरस्य जीवितम् ॥ २५ ॥ अर्थ-शुकदेवजी कहते हैं-हे रंभे ! माया ( कपट) की
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