Book Title: Rambhashuk Samvad
Author(s): Hariprasad Bhagirath
Publisher: Hariprasad Bhagirath

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Page 17
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अर्थ-शुकमुनि बोले-हे कामिनी ! स्त्रीके विषयभोगसे होनेवाले सब सुखोंको अनित्य ( नष्ट होनेवाले) और दुःखदायी जानके, जिसने योगाभ्यास धारण नहीं किया, उस नरका जीवना वृथा गया ॥ २३ ॥ रम्भोवाच ॥ विशालवेणी नयनाभिरामा कंदर्पसम्पूर्णनिधानरूपा॥ भुक्ता न येनैव वसन्तकाले वृथा गतं तस्य नरस्य जीवितम् ॥ २४॥ अर्थ-रंभा बोली-बहुत अच्छी वेणी केशबंध ( चोटीपटीआदि) से विभूषित, नेत्रोंको सुख देनेवाली, संपूर्ण शरीरमें कामदेवसे भरी हुई ऐसी सुंदरी स्त्री जिसनें वसंत समयमें नहीं भोगी तिस मनुष्यका जोवना व्यर्थ गया ॥ २४ ॥ शुक उवाच ॥ मायाकरण्डी नरकस्य हण्डी तपोविखण्डी सुकृतस्य भण्डी ॥ नृणां विखण्डी चिरसविता चे वृथा गतं तस्य नरस्य जीवितम् ॥ २५ ॥ अर्थ-शुकदेवजी कहते हैं-हे रंभे ! माया ( कपट) की For Private and Personal Use Only

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