Book Title: Rambhashuk Samvad
Author(s): Hariprasad Bhagirath
Publisher: Hariprasad Bhagirath

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Page 26
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir राधाकृष्णसंवादः भाषाटीका. का सुन्दरी बल्लववल्लभासु __ त्वचित्तभित्तौ वद शालभञ्जी ।। त्वं मालतीमण्डितकेशपाशे मञ्चित्तभित्तौ किल शालभञ्जी ॥१॥ अर्थ-राधा कहती है-हे हरे ! आपके चित्तरूपी भीतको ( रोकनेवाली ) शाल (ओट, आवरण)को तोड़नेवाली गोपियोंमें कौनसी सुंदरी गोपी है ? श्रीकृष्ण बोले हे राधे ! मालतीपुष्पोंसे विभूषित गुंथे हुए केशोंवाली तुम मेरे चित्तरूपी मनकी मर्यादाको ( आड़को) तोरनेवाली हो. यहां सबही श्लोकोंमें राधाजीका प्रश्न और श्रीकृष्णजीका उत्तर समझना॥२॥ पुरातनस्यापि च निर्जरत्वे को नाम हेतुर्वद सत्यमेव ॥ १ प्राकारो वरणः शालः प्राचीनं प्रान्ततो वृतिरित्यमरः । For Private and Personal Use Only

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