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( २४ )
शुक उवाच ॥
सुरूपं शरीरं नवीनं कलत्रं धनं मेरुतुल्यं वचश्चारुचित्रम् ॥ हरेरङ्गियुग्मे मनश्वेदलमं
ततः किं ततः किं ततः किं ततः किम् ३९ ॥
अर्थ- शुकमुनि बोले- हे रंभे ! जो विष्णु भगवान्के चरणों में मन नहीं लगा तो सुरूप शरीर है तो क्या भया ? नवीन यौबनवती स्त्री है तो क्या ? सुमेरुपर्वतसमान धन है तो क्या ? ast सुंदर विचित्र वाणी है तो उससे क्या भया ? ( कुछभी नहीं बनसका ) ॥ ३९ ॥
इति वेरीनिवासिपंडितवसतिरामशास्त्रिविरचितभाषाटीकार्या रंभाशुकसंवादरूपः शृंगारज्ञाननिर्णयः समाप्तः ।।
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