Book Title: Rambhashuk Samvad
Author(s): Hariprasad Bhagirath
Publisher: Hariprasad Bhagirath

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Page 25
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २४ ) शुक उवाच ॥ सुरूपं शरीरं नवीनं कलत्रं धनं मेरुतुल्यं वचश्चारुचित्रम् ॥ हरेरङ्गियुग्मे मनश्वेदलमं ततः किं ततः किं ततः किं ततः किम् ३९ ॥ अर्थ- शुकमुनि बोले- हे रंभे ! जो विष्णु भगवान्‌के चरणों में मन नहीं लगा तो सुरूप शरीर है तो क्या भया ? नवीन यौबनवती स्त्री है तो क्या ? सुमेरुपर्वतसमान धन है तो क्या ? ast सुंदर विचित्र वाणी है तो उससे क्या भया ? ( कुछभी नहीं बनसका ) ॥ ३९ ॥ इति वेरीनिवासिपंडितवसतिरामशास्त्रिविरचितभाषाटीकार्या रंभाशुकसंवादरूपः शृंगारज्ञाननिर्णयः समाप्तः ।। For Private and Personal Use Only

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